सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद नेता चुनाव जीतने के लिए अवास्तविक वादे कर रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा ने माझी लाड़की बहीण योजना के तहत महिलाओं को २१०० रुपए प्रति माह, किसानों को ऋण माफी, सम्मान निधि राशि १२ हजार रुपए से १५ हजार रुपए, १० लाख छात्रों को १० हजार रुपए का वजीफा, २५ लाख रोजगार के अवसर दिए हैं। २०२८ तक महाराष्ट्र को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना नवीकरणीय खाद्य योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त राशन दिया जाएगा, एससी-एसटी और ओबीसी को बिना ब्याज के १५ लाख रुपए दिए जाएंगे। महाराष्ट्र सरकार ने इस साल के बजट में जो खर्च का हिसाब लगाया है, उसके मुताबिक किसी एक सेक्टर में इतना फंड खर्च करने का प्रावधान नहीं है, जितना माझी लाड़कीr बहीण योजना पर खर्च किया जा रहा है।
आरबीआई के अनुसार, महाराष्ट्र पर कर्ज का बोझ पिछले दस वर्षों में दोगुना हो गया है, २०२४ में राज्य का कर्ज २.९४ लाख करोड़ रुपए था, जो २०२३ तक बढ़कर ७.८२ लाख करोड़ रुपए हो गया है। हालांकि, सरकार के मुताबिक, मार्च २०२५ तक कर्ज का आंकड़ा ७.८२ लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा।
महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति हो गई खराब
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने महाराष्ट्र सरकार के खातों की जांच के बाद गणना की कि राज्य को सात वर्षों में ३.२५ लाख करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है, जो राज्य सरकार के कुल बकाया कर्ज का केवल ६० प्रतिशत है। सीएजी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इस दौरान कर्ज चुकाने को लेकर सरकार पर आर्थिक दबाव पड़ सकता है और शिंदे सरकार ने सीएजी रिपोर्ट विधानसभा में पेश की है। यानी राज्य की वित्तीय स्थिति से सभी नेता भलीभांति परिचित हैं। वित्त वर्ष २०२४-२५ के बजट अनुमान के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार का कुल कर्ज ७,८२,९९१ करोड़ रुपए तक जा सकता है, जो राज्य के सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) का १८.३५ प्रतिशत होगा। २०२२-२३ में राज्य पर कुल कर्ज १७.२६ फीसदी और २०२३-२४ में १७.५९ फीसदी था। यानी पिछले कुछ सालों में राज्य पर कर्ज की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। साथ ही, राजकोषीय घाटा (सरकारी आय और व्यय के बीच का अंतर) भी तीसरी स्वीकृत सीमा से अधिक बढ़ गया है और अधिकारियों को लगता है कि सरकार कोई नया राजकोषीय बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है।