– ड्रग लाइसेंस और जांच पर पड़ रहा असर
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महायुति सरकार में नकली दवाओं की आपूर्ति का मुद्दा अभी भी शांत नहीं हुआ है। इसी बीच अब यह जानकारी सामने आ रही है कि इस विभाग में मंजूर पोस्ट में से ५० फीसदी वैकेंट हैं। इस वजह से महायुति के शासन में नकली दवाओं पर कंट्रोल कर पाना मुश्किल हो रहा है। साथ भी भगवान भरोसे चल रहे एफडीए में अब सवाल उठने लगा है कि इतने कम मानव संसाधन में कामकाज को वैâसे पूरा किया जाए। बताया गया है कि सबसे ज्यादा असर ड्रग लाइसेंस देने और जांच में पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि एफडीए को औषधि व प्रसाधन सामग्री अधिनियम, १९४० और १९४५ के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ ही दवाइयों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके लिए तकनीकी और गैर-तकनीकी पदों को मंजूरी दी गई है। एफडीए में विभिन्न संवर्गों के लिए ४१७ पद मंजूर हैं, जिनमें से २१६ यानी करीब ५० प्रतिशत पोस्ट खाली हैं।
सूत्रों के मुताबिक, औषधि निरीक्षकों के मंजूर २०० पदों में से ११७ पद रिक्त हैं। विश्लेषणात्मक रसायन विशेषज्ञों के ४० में से १३ पद और वरिष्ठ तकनीकी सहायकों के ४५ में से २९ पद रिक्त हैं। विभिन्न संवर्गों में बड़ी संख्या में रिक्तियां एफडीए के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। बता दें कि औषधि निरीक्षक दवाओं के नमूने लेते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोगों को नकली दवाएं न मिलें। प्रत्येक निरीक्षक को प्रति माह नमूना लेने का लक्ष्य दिया गया है। हालांकि, अपर्याप्त मानव संसाधन के कारण दवा के नमूने लेने और उनका परीक्षण करने में कठिनाइयां आ रही हैं।
परीक्षण में असमर्थ एफडीए
वर्ष २०१६ से २०२२ के बीच राज्य भर से २५,८०२ नमूने एकत्र किए जाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें से २५,०६५ नमूने लिए गए हैं। हालांकि, मानव बल की कमी के कारण एफडीए नमूनों का परीक्षण करने में असमर्थ है। छह वर्षों में २५,०६५ नमूनों में से केवल २२,८०० का ही परीक्षण किया जा सका है। इनमें से १,८८८ नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए।
१,१८२ दवा कंपनियों का नहीं हुआ निरीक्षण
इसी तरह ड्रग इंस्पेक्टरों को साल में कम से कम एक बार दवा बेचने के लिए लाइसेंस प्राप्त सभी प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करना आवश्यक है, लेकिन मौजूदा सरकार के कार्यकाल में ६५ प्रतिशत से अधिक एलोपैथिक दवा निर्माण कंपनियों का वार्षिक निरीक्षण नहीं किया गया। वैâग रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने वाली ४,९५४ कंपनियों में से १,१८२ का निरीक्षण नहीं किया गया।