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महाशिवरात्रि पर काशी में रहेगा अभेद सुरक्षा व्यवस्था, भक्तों की अपार भीड़ को देखते हुए बाबा का 36 घंटे चलेगा अनवरत दर्शन

उमेश गुप्ता / वाराणसी

काशी में महाशिवरात्रि की तैयारी पूरी हो चुकी है। मंदिर में दर्शन पूजन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के खास इंतजाम किया गया है। ताकि किसी भी श्रद्धालुओ को किसी भी प्रकार की कोई असुविधा न हो। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए कि परिंदा भी पर न मार सके।

महाशिवरात्रि पर्व के दृष्टिगत समस्त बाबा के भक्तों के सुगमता पूर्वक दर्शन कराने हेतु मंदिर प्रशासन द्वारा धाम में पांच प्रवेश द्वारों से श्रद्धालुओं का प्रवेश व निकास सुनिश्चित किया गया है। पांचो प्रवेश द्वार क्रमशः ढूंढीराज गणेश द्वार (माँ अन्नपूर्णा द्वार), गंगा द्वार (ललिता घाट), सरस्वती द्वार, विश्वनाथ द्वार (गेट नं 04) व नंदूफारिया रैम्प से सुनिश्चित किया गया है। समस्त प्रवेश द्वारों पर समुचित बैरिकेडिंग की व्यवस्था कराई गई है जिससे किसी भी दर्शनार्थी को बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन करने में असुविधा का सामना न करना पड़े।

दूसरी ओर काशी में महाशिवरात्रि पर शिव-पार्वती विवाह के उत्सव का क्रम बुधवार से विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर आरंभ हो गया। टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर बाबा के रजत विग्रह का प्रतीक आगमन हुआ। अयोध्या के रामायणी पं. वैद्यनाथ पांडेय के परिवार से भेजी गई हल्दी संध्याबेला में शिव को लगाई गई। बाबा को खास बनारसी ठंडई, पान और पंचमेवा का भोग लगाया गया।

इसके पूर्व बसंत पंचमी पर बाबा श्री काशी विश्वनाथ की प्रतिमा  तिलकोत्सव हुआ था। हल्दी की रस्म के लिए गवनहिरयों की टोली संध्या बेला में महंत आवास पहुंची। बाबा का संजीव रत्न मिश्र ने विशेष राजसी-स्वरूप में शृंगार कर भोग लगाया। इसके उपरांत आरती उतारी। एक तरफ मंगल गीतों का गान हो रहा था, दूसरी तरफ बाबा को हल्दी लगाई जा रही थी। बाबा के तेल-हल्दी की रस्म महंत डाॅ. कुलपति तिवारी के सानिध्य में हुई। पूजन अर्चन का विधान उनके पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने पूर्ण किये। मांगलिक गीतों से महंत आवास गुंजायमान हो रहा था। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित गीत गाए गए।

महंत आवास पर शिवांजलि में वृंदावन से आए भक्तों की टोली ने बाबा के हल्दी के उत्सव के बाबा के समक्ष शिव-पार्वती प्रसंग को नृत्य की भंगिमाओं और भावों के माध्यम से जीवंत किया। नृत्य सेवा की शुरुवात उन्होंने अर्धांग से की। ‘अर्धांग भस्म भाभूत सोहे अर्ध मोहिनी रूप है’ पर भावपूर्ण नृत्य के उपरांत भगवान शिव के भजन ‘हे शिव शंकर हे गंगा धर करुणा कर करतार हरे’ पर भावनृत्य किया। पारंपरिक कथक नृत्य के अंतर्गत गणेश परन और शिव परन की प्रस्तुति विशेष रही। समापन होली गीत पर नृत्य से किया। गीत के बोल थे ‘कैसी ये धूम मचाई बिरज में’। इससे पूर्व गवनहारियों ने टोली ने बाबा की पंचबदन प्रतिमा के समक्ष मंगल गीत गाए। ‘पहिरे ला मुंडन क माला मगर दुल्हा लजाला..’,‘दुल्हा के देहीं से भस्मी छोड़ावा सखी हरदी लगावा ना…’,’शिव दुल्हा के माथे पर सोहे चनरमा…’,‘ अड़भंगी क चोला उतार शिव दुल्हा बना जिम्मेदार’, और ‘भोले के हरदी लगावा देहिया सुंदर बनावा सखी…’ आदि हल्दी के पारंपरिक शिवगीतों में दुल्हे की खूबियों का बखान किया गया। साथ ही दूल्हन का ख्याल रखने की ताकीद भी की जा रही थी। मंगल गीतों में यह चर्चा भी की गई कि विवाह के लिए तैयारियां कैसे की जा रही हैं। नंदी, शृंगी, भृंगी आदि गण नाच नाच कर सारा काम कर रहे हैं। शिव का सेहरा और पार्वती की मौरी कैसे तैयार की जा रही है। हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए ‘साठी क चाऊर चूमिय चूमिय..’ गीत गाकर महिलाओं ने भगवान शिव की रजत मूर्ति को चावल से चूमा।

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