सामना संवाददाता / मुंबई
भारत में नेताओं के दल बदलने का खेल साल १९६०-७० में हरियाणा से शुरू हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे यह रोग पूरे भारत में पैâल गया। २०१४ में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से नेताओं के दल बदलने के मामलों में काफी तेजी आई है। इस दलबदलुओं में महाराष्ट्र के पांच ऐसे नेता शामिल हैं जो विभिन्न राजनीतिक पार्टियों का ‘मजा’ ले चुके हैं और वे बिना सत्ता नहीं रह सकते हैं।
लोकसभा चुनाव २०२४ का बिगुल बजने के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने साथ लाने की कोशिश में भी लगी हैं। इसी क्रम में शरद पवार को एक और बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के विधान परिषद सदस्य एकनाथ खडसे ने हाल ही ऐलान किया कि वो आने वाले १५ दिनों में राष्ट्रवादी कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हो जाएंगे। १९८५ के दशक में जब छगन भुजबल और नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ी थी तो उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से गंभीर विरोध का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं उनके साथ पार्टी छोड़ने वाले अधिकांश विधायक दोबारा निर्वाचित नहीं हो सके। इसी प्रकार महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल सुरेश नार्वेकर वर्तमान में बीजेपी में हैं, लेकिन नार्वेकर भी एक समय शिवसेना में थे। साल २०१४ में शिवसेना ने जब लोकसभा चुनाव के लिए उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दी तो वे उसी साल एनसीपी में चले गए। साल २०१४ में एनसीपी में शामिल होने के बाद उन्होंने मावल निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, इसके बाद उन्होंने उस पार्टी का साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी का हाथ थाम लिया था। नार्वेकर २०१९ में चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और उन्हें दक्षिण मुंबई के कोलाबा से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा गया था। इसके अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में विवादित मंत्री हैं, जिनका नाम अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी है। वह सिलोद विधानसभा से तीन बार के विधायक हैं। पिछले तीन चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को पटखनी देते हुए विधानसभा पहुंचे हैं।
सत्तार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत १९८४ में ग्राम पंचायत सदस्य के तौर पर की थी और १९९९ में कांग्रेस का हाथ थामा था। १७ सालों तक कांग्रेस का हाथ थामने के बाद सत्तार ने स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी से समर्थन नहीं मिलने पर नाराजगी जताते हुए इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अब्दुल सत्तार ने शिवसेना ज्वाइन कर ली। वह २०१९ में शिवसेना में शामिल हुए, उसके बाद शिवसेना से गद्दारी करके शिंदे गुट में चले गए और मंत्री पद पर विराजमान हैं।
छगन भुजबल वर्तमान में अजीत पवार गुट में हैं। भुजबल का गद्दारी का बहुत पुराना इतिहास है। १९६० के दशक में उन्होंने अपना राजनीतिक करियर शिवसेना से शुरू किया था। भुजबल ने १९९१ में शिवसेना का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। जब कांग्रेस के नेता शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने का पैâसला लिया था। उसके बाद छगन ने एनसीपी को समर्थन दिया था।