महाराष्ट्र विधानसभा के लिए बुधवार को मतदान संपन्न हो गया है। चुनाव लोकतंत्र का उत्सव वगैरह कहने की प्रथा है, लेकिन अब यह पैसे का उत्सव बन गया है। इस चुनाव में जिस तरह सत्ताधारी दल पैसों की तूफानी बारिश करते रहे, उससे तो यही कहना पड़ेगा। ये तस्वीर हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि भाजपा ने इस चुनाव में उनकी छवि खराब करने के लिए ५०० करोड़ रुपए खर्च किए। महाराष्ट्र में तो ये आंकड़ा जरूर दो हजार करोड़ के पार पहुंच गया होगा। मतदान से एक दिन पहले मुंबई, विरार-नालासोपारा, नासिक, छत्रपति संभाजीनगर जैसी जगहों पर करोड़ों रुपए के खोके मिले और ये वितरण भाजपा और शिंदे के लोग कर रहे थे। पैसे की यह बरामदगी तब हुई जब मतदान में कुछ ही घंटे बाकी थे। इसका मतलब यह है कि पहले निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में पैसा पहुंचा और पुलिसिया बंदोबस्त में पैसा बांटकर मतदाताओं को खरीदने की कोशिश की गई। जब महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति पर सरेआम बट्टा लगाया जा रहा था तो हमारा चुनाव आयोग सो रहा होगा। विरार इलाके के नालासोपारा में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े एक होटल में पैसों से भरा बैग लेकर घुसे और पैसों का वितरण शुरू होते ही चुनाव आयोग के लोग तो वहां नहीं पहुंचे, लेकिन हितेंद्र ठाकुर की पार्टी बहुजन विकास आघाड़ी के लोग वहां पहुंच गए। चार घंटे तक तावड़े को घेरकर ‘जाम’ लगा दिया। तावड़े के कमरे में पैसे थे, लेकिन चुनाव आयोग ने समय पर पंचनामा कर मामला दर्ज नहीं किया। मामला दर्ज किया गया, वह भी आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर। और चुनाव आयोग के नियमों को तोड़कर छोटी-छोटी बातों पर प्रेस कॉन्प्रâेंस की। विधायक ठाकुर का आरोप है कि तावड़े के पास ५ करोड़ रुपए थे, लेकिन आयोग कागज पर सिर्फ ९ लाख लेकर आया। फिर उपरोक्त मलीदा सुरक्षित बाहर निकालने के लिए पुलिस, आयोग के लोगों ने किस दरवाजे का इस्तेमाल किया? शिंदे ग्रुप के विधायकों के पंद्रह करोड़ सांगोला के टोल नाके पर पकड़े गए थे, लेकिन चुनाव आयोग और पुलिस ने कुछ रकम जब्त कर बाकी रकम संबंधित को लौटाकर शिंदेगीरी का अपना कर्तव्य निभाया। सांगोला में कार और ड्राइवर सीधे विधायक के थे। फिर भी उन्हें बचाने का घटियापन किया गया। यह रहस्य है कि नालासोपारा में ‘तावड़े’ का गेम शिंदे ने किया या भाजपा के किसी और ने। क्योंकि बाद में एक फोन आया और ठाकुर मंडली तावड़े समेत उसी गाड़ी से कहीं बैठने या बात करने चले गए। लोकतंत्र में जनता को बेवकूफ बनाने के ये खेल चल रहे हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पैसा बांटा गया। पैसों का बड़ा सैलाब आ गया। इस सैलाब में कौन वैâसे बह गया और कौन वफा की र्इंटों पर तर गया, यह तो अगले ७२ घंटों में पता चल जाएगा, लेकिन इतना तो तय है कि चुनाव अब लोकतंत्र का उत्सव नहीं, बल्कि भ्रष्ट पैसे का उत्सव बन गया है। चुनाव पर सट्टा लगाया जाता है और उस सट्टे में सैकड़ों करोड़ों का कारोबार होता है। लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब किए जाते हैं। धर्म के नाम पर गंदा प्रचार कर ऐन वक्त पर तनाव बढ़ाकर वोट के लिए ‘बांग’ दी जाती है। हिंदू-मुसलमानों के बीच दरार पैदा कर ‘जिहाद’ का मुद्दा बनाया जाता है और आपका चुनाव आयोग भाजपा का लाचार शिंदे बनकर खुली आंखों से सब देखता रहता है। लोकतंत्र देश का धर्म है। आजादी की लड़ाई उस धर्म के लिए लड़ी गई, लेकिन भाजपा और संघ के लोग घर-घर जाकर कहने लगे कि चुनाव एक धर्मयुद्ध है। लोगों के मन को प्रदूषित करने का प्रयास किया गया। महाराष्ट्र जैसे राज्य में ऐसा हो रहा है और देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान के मुख्यमंत्री अपने सरकारी लाव- लश्कर के साथ महाराष्ट्र में डेरा डाले हुए हैं। यह लोकतंत्र पर एक तरह का दबाव था। देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का एक राज्य में पंद्रह-पंद्रह दिन तक डेरा डालना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। इसमें पूरे सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग होता है। जो नहीं होना चाहिए था वह कल के चुनाव में हुआ। फिर भी महाराष्ट्र ने सावधानी से मतदान किया। लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश की गई, लेकिन महाराष्ट्र में लोकतंत्र जिंदा रहेगा। महाराष्ट्र का गौरव विजयी होगा। महाराष्ट्र का स्वाभिमान पैसे के सैलाब में नहीं बहा होगा, इस बाबत हमारे मन में कोई संदेह नहीं है।