– सुषमा गजापुरे
२०२४ लोकसभा चुनाव के तीन चरण समाप्त हो चुके हैं। लगभग २८५ सीट पर मतदान संपन्न हो चुका है। बची हुर्इं २५८ सीटों पर अगले चार चरणों पर वोटिंग १ जून तक संपन्न हो जाएगी, पर आज हम इस लेख में बात करेंगे कि पहले तीन चरणों में क्या हुआ और मुख्यत: चौथे चरण में भाजपा किस जमीन पर खड़ी है। पहले तीन चरणों की खास बात २०१९ के मुकाबले मतदान के प्रतिशत में भारी गिरावट का होना है, जिसे विश्लेषक अलग-अलग चश्में से देखने का प्रयास कर रहे हैं। एक बात तो तय हो चुकी है कि भाजपा नेताओं ने ‘अब की बार ४०० पार’ का नारा लगाना बंद कर दिया है। हाल इस कदर बुरा है कि अब की बार ३०० पार का नारा भी अब सुनने में नहीं आ रहा है। कुछ हफ्ते पहले तक ये माना जा रहा था कि चुनाव तो नरेंद्र मोदी १०० प्रतिशत जीतने जा रहे हैं पर स्थितियां जमीन पर इस तेजी से पलटीं कि ये यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि अब भाजपा स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर भी पाएगी या नहीं। संविधान और आरक्षण दो ऐसे मुद्दे बनकर पटल पर छा गए कि मोदी समेत पूरी भाजपा इस नैरेटिव से छुटकारा पाने में लगी नजर आई। हर मीटिंग में भाजपाई ये विश्वास दिलाते नजर आए कि संविधान और आरक्षण समाप्त नहीं होंगे, पर ये दोनों मुद्दे भाजपा के गले की फांस बनकर उभर आए।
अधिकतर विश्लेषक ये मान कर चल रहे हैं कि भाजपा को हिंदी पट्टी के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी भारी क्षति उठानी पड़ेगी। बंगाल, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान में भाजपा को बड़े स्तर पर नुकसान होंगें और गुजरात में भी उसका गढ़ ढहता हुआ नजर आ रहा है। अब ये लगभग निश्चित हो चुका है कि गुजरात में २६ में से २६ सीट दूर की कौड़ी लगती है और राजपूत आंदोलन ने न केवल गुजरात बल्कि कई अन्य राज्यों में भी भाजपा का बड़ा नुकसान किया है। पहले तीन चरणों में हुए नुकसान को किसी भी कीमत पर भाजपा अंतिम चार चरणों में नहीं भर सकती है। मोदी और भाजपा का मुख्य मुद्दा हिंदू- मुसलमान, पाकिस्तान और मांस-मछली तक सिमट कर रह गया है। हालांकि, तीसरे चरण के बाद मोदी जी ने अब अडानी, अंबानी का तड़का चुनावों में लगा दिया है। अब तक कांग्रेस को अपने पिच पर खिलाने वाली भाजपा अब कांग्रेस के पिच पर खेलने को मजबूर है।
अब आते हैं चौथे चरण की ९६ सीटों पर। दरअसल, देखा जाए तो भाजपा चौथे चरण में गंभीर रूप से सिर्फ ५४ सीट पर ही चुनाव लड़ती नजर आ रही है। अगर हम तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की ४२ सीट निकाल दें तो ९६ में से भाजपा ५४ सीट पर ही गंभीर चुनौती पेश करती नजर आ रही है। तेलंगाना की १७ सीट पर एक बात तो पूरी तरह से तय है कि भाजपा २०१९ के ४ सीट का रिजल्ट अब नहीं दोहरा पाएगी। अधिक से अधिक १ से २ सीट पर भाजपा इस प्रदेश में जीत सकती है। रेवंत रेड्डी के आने के बाद स्थिति तेजी से पलटी है और उनकी पकड़ तेलंगाना की राजनीति पर और पुख्ता हो गई है। भाजपा के प्रमुख प्रभाव वाले क्षेत्र आदिलाबाद, निजामाबाद, करीम नगर और सिकंदराबाद ही हैं, जबकि कांग्रेस की पकड़ अब पूरे तेलंगाना में नजर आती है। भाजपा के लिए अब ४ सीट को वापिस प्राप्त करना टेढ़ी खीर है, क्योंकि तेलंगाना में भाजपा के पास एक भी करिश्माई नेता नहीं है। दूसरी ओर बीआरएस के केसीआर भी अब बुझे-बुझे नजर आते हैं। भाजपा और बीआरएस पार्टी अधिक से अधिक २-२ सीट की आशा इस चुनाव में कर सकती हैं।
आंध्र प्रदेश की २५ सीट पर अब भी वाईएसआरसीपी का प्रभाव मजबूत नजर आता है। भाजपा का वोट शेयर आंध्र में १ प्रतिशत से भी कम रहा है और वह अब तेलुगू देसम के कंधे पर चढ़कर १ सीट हथिया लेना चाहती है। इस प्रकार आंध्र और तेलंगाना की ४२ सीट में भाजपा सिर्फ ३-४ सीट तक ही प्राप्त कर पाएगी, बाकी बची ५४ सीट पर भी उसकी चुनौतियां कम होती नजर नहीं आ रही हैं।
बाकी बची ५४ सीट में झारखंड की ४ सीट में से ३ सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रभाव वाली आदिवासी बहुल सीट हैं। बिहार की ५ सीट और मध्य प्रदेश की ८ सीट पर भी चुनाव होगा। महाराष्ट्र की ११, उत्तर प्रदेश की १३ और बंगाल की ८ सीट भाजपा के लिए बहुत ही टेढ़ी खीर साबित होने जा रही है। सच तो ये है कि भाजपा की सीट हर चरण में नीचे की ओर जा रही है। अगर भाजपा चौथे चरण की ९६ सीट में से २५ सीट भी प्राप्त कर पाती है तो उसे ईश्वर को धन्यवाद करना चाहिए।
भाजपा के लिए चुनाव का चौथा चरण शायद सबसे कठिन चरणों में से एक होगा। यहां उसकी उम्मीदें बहुत अधिक तो नहीं होंगी पर जब वह अपने प्रभावक्षेत्र में सीटें गंवाती नजर आ रही है तो उसके २७२ के आंकड़े तक पहुंचने के प्रयासों को बड़ा धक्का लगता हुआ दिखाई दे रहा है। हालांकि, भारत के मतदाता क्या सोचते हैं वह तो ४ जून को ही पता चलेगा पर हां, एक बात तो तय है कि ये चुनाव अब एकतरफा नहीं रह गया है।
(स्तंभ लेखक आर्थिक और समसामयिक विषयों पर चिंतक और विचारक हैं)