एम. एम. सिंह
नाम में क्या रखा है? गर गुलाब को किसी भी अन्य नाम से पुकारें तो उसकी खुशबू भी उतनी ही भीनी होगी’ विलियम शेक्सपियर के मशहूर नाटक रोमियो एंड जूलियट की यह पंक्तियां अपने आप में एक फलसफा हैं। लेकिन चीन की सोच ऐसी कभी भी नहीं रही है। या फिर शेक्सपियराना जैसी चीजों का वहां पर कोई अर्थ ही नहीं है। जो देश कोरोना जैसी महामारी पैâलाकर विश्व में हाहाकार मचाने में गुरेज नहीं करता, उससे किसी भी प्रकार की ईमानदारी की उम्मीद करना बेइमानी है। उसने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने की एक और कवायद शुरू की है, जिससे अनसुलझी सीमा का सवाल फिर से सामने आ गया है। २०२० में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन की सेनाओं के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लगभग चार वर्षों से तनाव बना हुआ है।
नाम बदलने की यह कवायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले महीने सेला सुरंग का उद्घाटन करने के लिए अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के तुरंत बाद हुई है, जो तवांग तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगी। १९६२ में भारतीय और चीनी सैनिक तवांग में भिड़ गए और दिसंबर २०२२ में एक बार फिर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तवांग में यथास्थिति को बदलने की असफल कोशिश की। सेला सुरंग भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सैनिकों और हथियारों को भारत-चीन सीमा पर शीघ्रता से ले जाने की क्षमता में सुधार होगा। बीजिंग ने हाल ही में एक नक्शा जारी किया है। अरुणाचल प्रदेश को चीन के भीतर दिखाते हुए इसे जंगनान बताया गया है। क्षेत्रीय दावों पर जोर देते हुए, चीन ने एशियाई खेलों और विश्व विश्वविद्यालय खेलों में उनकी भागीदारी के संबंध में अरुणाचल के खिलाड़ियों के रास्ते में बाधाएं खड़ी कर दी हैं, जिनकी मेजबानी बीजिंग ने २०२३ में की थी। चीन कथित तौर पर अपने नागरिकों को उन गांवों में बसा रहा है, जहां उसका कब्जा है। नाम बदलने के विवाद पर वापस जाएं तो अरुणाचल को भारत के साथ धर्म, पहचान और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के संबंध में चीन के बड़े उद्देश्यों के भंवर में फंसाया जा रहा है। तवांग के सामरिक महत्व के अलावा तिब्बती बौद्ध धर्म में इसका विशेष स्थान है। १९५० के दशक में तिब्बत पर कब्जे के बाद से चीन उस पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। तिब्बत की राजधानी, ल्हासा, १९८९ और २००८ में अशांति से हिल गई है। चीन की नीतियों के विरोध में तिब्बती धर्मगुरु और कार्यकर्ताओं द्वारा आत्मदाह की घटनाएं हुर्इं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने २०२१ में तिब्बत का दौरा किया। यह लगभग ३० वर्षों में किसी राष्ट्र के प्रमुख द्वारा इस क्षेत्र की पहली यात्रा थी।
वापस आते हैं अरुणाचल प्रदेश में स्थान के नाम के बदले जाने पर। हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन अरुणाचल प्रदेश की कुछ जगहों के नाम बदले जाने पर कहा है,‘ कल चीन के कुछ जगहों के नाम हम बदल दें तो वह प्रांत हमारे हो जाएंगे? नाम बदलने से कुछ होने वाला नहीं ऐसी हरकतों से भारत चीन के रिश्ते खराब होंगे।’
लगभग इसी तरह के कुछ बयान इसके पहले हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी दिए थे। सवाल यह है कि चीन की इन हरकतों पर इस तरह की बयानबाजी से क्या चीन अपनी शातिराना हरकत बंद कर देगा। क्या इसके लिए जरूरी नहीं कि चीन से निपटने के लिए कोई नई रणनीति पर काम किया जाए, क्या सरकार के पास इसके लिए वक्त है? वर्ना फिर शेक्सपियर की वही पंक्तियां दोहरानी प़ड़ेंगी कि नाम में क्या रखा है?