मुख्यपृष्ठसंपादकीययह कृतघ्नता इतिहास में दर्ज रहेगी

यह कृतघ्नता इतिहास में दर्ज रहेगी

आज का हिंदुस्थान मोदी-शाह सरकार के बाप-दादाओं की कमाई नहीं है। फिर भी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए दो मीटर जमीन देने से इनकार कर दिया गया और देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने वाले असाधारण व्यक्ति को निगमबोध घाट श्मशान में अंतिम विदाई दी गई। इसका करोड़ों हिंदुस्थानियों के दिलों में हमेशा अलम रहेगा। डॉ. मनमोहन सिंह ने देश की अखंड सेवा की है। वे दस साल तक प्रधानमंत्री रहे। इन दस वर्षों में उन्होंने देश को आर्थिक अराजकता से बाहर निकाला और मध्यम वर्ग को अच्छे दिन दिखाए। डॉ. सिंह के पास जितनी शिक्षा है, उतनी तो पूरी भाजपा के पास नहीं होगी। वे संसार में एक ज्ञानी व्यक्ति के रूप में विख्यात हुए, गौरवान्वित हुए। यह गौरव भारत का था। ऐसे गौरवशाली नेता का अंतिम संस्कार उसी स्थान पर किया जाए, जहां उनका स्मारक बनाया जा सके, मोदी सरकार ने इस बहुत ही सरल और उचित मांग को मानने से इनकार कर दिया। यह उनके मन की गंदगी और कड़वाहट है। डॉ. सिंह महान थे, लेकिन उनकी मृत्यु ने मोदी और उनकी सरकार को छोटा बना दिया है। बेशक, मौजूदा शासक डॉ. मनमोहन सिंह की ऊंचाई तक कभी नहीं पहुंच सकेंगे। दुनियाभर से मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि दी गई। रूस, अमेरिका, चीन जैसे देशों ने कहा ‘हमने अपना प्रिय मित्र खो दिया।’ अपने दौर में डॉ. सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में प्रचार नहीं किया। नमस्ते बुश या नमस्ते ओबामा जैसे समारोह नहीं मनाए। मनमोहन को दुनिया के किसी भी नेता से शिष्टाचार छोड़कर गले मिलते नहीं देखा गया। वे स्वाभिमान के साथ तनी गर्दन से शान से जीए। उनके भाषण दुनिया के कई संसदीय हॉलों में लोकप्रिय थे। उनमें दूरदर्शिता, मार्गदर्शन और आत्मविश्वास था। डॉ. सिंह को अपने भाषण के लिए कभी भी ‘टेलीप्रॉम्प्टर’ की जरूरत नहीं पड़ी और उन्होंने कभी भी अटल बिहारी, आडवाणी, गोलवलकर गुरुजी और डॉ. हेगड़ेवार का अपमान नहीं किया। १९८४ के दंगों में सिखों का नरसंहार हुआ था। उन्होंने इसके लिए माफी मांगी। उसका ठीकरा उन्होंने डॉ. हेगड़ेवार या गोलवलकर गुरुजी पर नहीं फोड़ा। डॉ. मनमोहन सिंह की कार्यशैली पर पंडित नेहरू की छाप दिखती थी।
विकास-विज्ञान के जरिए
वे देश का निर्माण कर रहे थे। श्रीमान मोदी अपने भाषणों में कहते थे कि जब रुपया गिरता है तो दुनिया में देश की प्रतिष्ठा गिरती है। लेकिन जब मोदी खुद प्रधानमंत्री बने तो रुपये और देश की कीमत गिरने लगी। क्योंकि देश हिंदू-मुसलमानों में तनाव पैदा करने से नहीं चलता, बल्कि १४० करोड़ लोगों की जरूरतों और उनकी अर्थव्यवस्था को समझना पड़ता है। डॉ. मनमोहन सिंह देश में उदारीकरण लाए। वैश्विक निवेशकों के लिए भारत के दरवाजे खोले। इससे मध्यम वर्ग के हाथों में भी पैसा खेलने लगा। उन्होंने यह काम बहादुरी से किया। मोदी उदारीकरण और निजीकरण के बीच अंतर नहीं समझते। उन्होंने एयरलाइंस कंपनियां, हवाई अड्डे, बंदरगाह, तेल कंपनियों का निजीकरण कर सारी संपत्ति अपने मित्र गौतम अडानी को सौंप दी। डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया। मोदी ने निजीकरण किया। इसलिए मोदी सरकार ने डॉ. मनमोहन के प्रति द्वेष रखते हुए उनके अंतिम संस्कार के लिए दो मीटर जमीन देने से इनकार कर दिया। मुंबई, दिल्ली की जमीनें अब अडानी के कब्जे में हैं। तो क्या कांग्रेस को डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए जो जमीन चाहिए थी, उसके लिए अडानी से आवेदन करना चाहिए था? मनमोहन सिंह को ‘उत्तर-आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा जाता है। उनका उल्लेख ‘maker of post- modern India’ के तौर पर किया जाता है। इसका मतलब उन लोगों को समझना चाहिए, जिन्होंने सिंह के अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं दी। १६ अगस्त, २०१८ को अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हुआ। तब प्रधानमंत्री मोदी थे। अटलजी का अंतिम संस्कार राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर किया गया। जहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार किया जाता है और यह स्थान इसके लिए आरक्षित है। अटलजी का अंतिम संस्कार यहीं किया गया था और उनकी समाधि के लिए सात एकड़ जमीन दी गई थी, लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह को उसी स्थान पर दो मीटर जमीन देने से इनकार कर दिया गया। यह कृतघ्नता है। दरअसल, मनमोहन सिंह की महानता इस पर निर्भर नहीं है कि उनका अंतिम संस्कार कहां किया गया, लेकिन उनके अंतिम संस्कार के लिए दो मीटर जगह देने से इनकार कर भाजपा सरकार ने दिखा दिया कि उसे
ईमानदारी से नफरत
किस हद तक है। मोदी सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की बैसाखी पर टिकी हुई है। मौत के बाद मोदी सरकार की डॉ. मनमोहन सिंह के मामले में, जो नफरत की राजनीति चल रही है क्या उससे चंद्रबाबू और नीतीश कुमार सहमत हैं? उनका यह स्पष्ट करना जरूरी है। मनमोहन सिंह देश के सबसे सफल वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री थे। फिर भी वे राजनीतिक नेता नहीं बन सके। हालांकि यह सच है, मनमोहन सिंह ने पार्टियों को तोड़ने, सरकारों को फोड़ने, विपक्ष के प्रमुख नेताओं को अपने पास खींचने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का उपयोग करने जैसे अलोकतांत्रिक उद्यम नहीं किए। भाजपा से नाराज गोपीनाथ मुंडे ने कांग्रेस में शामिल होने का मुहूर्त तय कर लिया था; लेकिन लोकसभा में विपक्ष के उपनेता रहे व्यक्ति का यह दलबदल मनमोहन सिंह को स्वीकार्य नहीं था और उन्होंने मुंडे के दलबदल को रोक दिया। शायद उनके दुर्लभ गुणों के कारण ही प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने मनमोहन के अंतिम संस्कार के लिए दो मीटर जमीन देने से इनकार कर दिया होगा। इसे ईमानदारी से एलर्जी ही कहना चाहिए। वैश्विक आर्थिक संकट का सामना कर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने वाले मनमोहन सिंह ने कभी अपने कार्यों का ढिंढोरा नहीं पीटा। राजनीतिक विरोधियों से बदला लेने का उनका स्वभाव नहीं था। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी ‘जेएनयू’ में मनमोहन सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय ने पहली बार ‘जेएनयू’ प्रशासन में हस्तक्षेप किया और निर्देश दिया कि विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करें और विरोध करने वाले छात्रों को विश्वविद्यालय से न निकालें। ऐसी ही होनी चाहिए शासकों की संवेदनशीलता। मोदी सरकार द्वारा डॉ. मनमोहन सिंह को अंतिम संस्कार के लिए राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर जगह नहीं दी गई। यह इस सरकार की कुरूपता है। लेकिन जैसे ही डॉ. मनमोहन सिंह का पार्थिव शरीर निगमबोध घाट पहुंचा, देश की जनता फूट-फूट कर रोने लगी। खुद राहुल गांधी भी अपने आंसू नहीं रोक पाए। लोगों के दिलों में डॉ. मनमोहन सिंह की जगह को मोदी और उनके लोग मिटा नहीं सकते। मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह को राजघाट पर दो मीटर जगह नहीं दी। हिंदुत्व और हिंदू धर्म कहता है कि मृत्यु के बाद कोई बैर नहीं रह जाता। ऐसा लगता है कि मोदी-शाह का हिंदुत्व बदले की स्याही से लिखा गया है। यह कृतघ्नता इतिहास में दर्ज रहेगी।

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