रोहित शेट्टी के निर्देशन में २०१५ में बनी फिल्म ‘दिलवाले’ में काजोल के साथ नजर आनेवाली कृति सेनन पूरे ९ वर्षों बाद एक बार फिर नेटफ्लिक्स की थ्रिलर फिल्म ‘दो पत्ती’ में काजोल के साथ डबल रोल में नजर आ रही हैं। फिल्म में कृति की परफॉर्मेंस की जोरदार तारीफ हो रही है। पेश है, कृति सेनन से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
फिल्म ‘दो पत्ती’ की निर्मात्री बनने के पीछे क्या वजह रही?
मेरी जगह कोई और हीरोइन होती तो उसे भी ‘दो पत्ती’ की निर्मात्री बनने की प्रेरणा मिल ही जाती। फिल्म के निर्देशक शशांक चतुर्वेदी और लेखिका कनिका ढिल्लन ने जब फिल्म की कहानी सुनाई तो मैं प्रभावित हो गई। एक-दूसरे से विपरीत स्वभाव वाली दो सगी बहनों का चैलेंजिंग डबल रोल बड़ी मुश्किल से मिलता है। यही मेरी मुख्य प्रेरणा थी। स्वयं कनिका मेरे साथ इस प्रोजेक्ट में सह निर्मात्री हैं। ‘दो पत्ती’ हम दोनों का साझा प्रयास है। अभी तक जो फीडबैक मुझे मिला, वो उत्साहवर्धक है।
९ वर्षों बाद दोबारा काजोल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
फिल्म ‘दिलवाले’ के बाद काजोल के साथ लगभग १० वर्षों बाद स्क्रीन शेयर करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। काजोल एक ऐसी अदाकारा हैं, जो किसी भी किरदार के साथ न्याय कर सकती हैं। जब मैंने उनके साथ फिल्म ‘दिलवाले’ की उस वक्त मैं काफी जूनियर थी। काजोल के साथ ‘दिलवाले’ में मेरा कोई ढंग का डायलॉग नहीं था, इसलिए ‘दिलवाले’ के अनुभव से ‘दो पत्ती’ का अनुभव मेरे लिए काफी दमदार है। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।
डबल रोल निभाते वक्त क्या चैलेंजेस रहे?
डबल रोल वाली फिल्में बहुत कम बनी हैं। रमेश सिप्पी की फिल्म ‘सीता और गीता’ को कल्ट फिल्म माना जाता है। उस फिल्म में सीता बेहद शरीफ और सीधी-साधी है तो गीता चालाक। लेकिन गीता दुष्ट नहीं, उसमें नेगेटिविटी नहीं है, जो ‘दो पत्ती’ की बहनों में है। सौम्या नाम के अनुरूप सौम्य है और दूसरी बहन शैली तूफान है, पता नहीं कब क्या कर बैठे। अच्छी व बुरी को बैलेंस करना और किरदार को न्याय देना ही चैलेंजिंग रहा। लेकिन सौम्या और शैली को स्क्रिप्ट लेवल पर कनिका ने भिन्न बनाया। एक्शन और रिएक्शन को एक साथ बैलेंस करना आसान नहीं होता।
एक अभिनेत्री का निर्मात्री बनना कितना आसान और कितना मुश्किल होता है?
पिछले ४-५ वर्षों से या हो सकता है, उससे भी पहले मुझसे सीनियर अभिनेता और अभिनेत्रियां फिल्म निर्माण के क्षेत्र में खुद को आजमा चुके हैं। आमिर, शाहरुख, सलमान के अलावा अजय देवगन, अक्षय कुमार कई फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं और कर चुके हैं। अनुष्का शर्मा, दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, तापसी पन्नू, ऋचा चड्ढा ऐसे कई नाम मैं आपको गिनवा सकती हूं जो एक सफल निर्मात्री भी हैं। कहना न होगा कि यह सभी नायिकाएं बहुत सक्षम अभिनेत्रियां भी हैं। निर्माण में क्रिएटिव इनपुट्स की जरूरत होती ही है, लेकिन महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है सभी को साथ लेकर एक सफल और स्तरीय फिल्म को अंजाम देना। जो निर्मात्री खुद अभिनेत्री भी है, उसे संयुक्त रूप से काम का विभाजन करना होता है। खुद सेट पर प्रोडक्शन से संबंधित काम नहीं करना होता इसलिए यह तनाव की बात नहीं है। हां, यह चुनौती तो है, जिसे कुशलता से निभाना आना चाहिए।
आपका अब तक का सफर कैसा रहा?
बेहद सुहाना। मैं यह कहना चाहती हूं कि मेरा सफर बहुत अच्छा रहा। मैंने कभी इसकी कल्पना तक नहीं की थी कि यूं ही शुरू किया मॉडलिंग का सफर मुझे अभिनय के क्षेत्र में ले आएगा और मुझे नामचीन एक्टरों के साथ काम करने का मौका मिलेगा। हालांकि, मुझे शुरुआत में साउथ की फिल्मों में काम करने का मौका मिला। भाषा की मुश्किलें आर्इं, क्योंकि मैं दिल्ली से हूं। राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना और फिल्म ‘हीरोपंती’ के लिए ‘फिल्मफेयर’ अवॉर्ड मिलना मेरे लिए बड़ी उपलब्धियां रहीं। अपने सफर को मैं खुशनुमा मानती हूं।