कुछ खास थे कल के “वो नज़ारे”
मगर थे वो बड़े प्यारे प्यारे
कुछ हम उनके करीब थे
कुछ वो थे ज़िंदगी में साथ हमारे
पता नहीं हक़ीक़त थी वो गुजरे वक्त की
या खुली आंखों से हमने जो देखे,
महज ‘हसीं ख़्वाब’ थे वो हमारे
जाने वक़्त की क्या मर्ज़ी थी
या खता रही होगी कुछ हमारी,
बिछड़ गये हमसे वो सारे के सारे
कट रही है ज़िंदगी इस सोच के सहारे कि
मिलना,बिछड़ना ये तो किस्मत का खेल है
कहीं जुदाई का ग़म तो कहीं दिलों का मेल है
कोई झेल रहा है खामोश रह तन्हाई का आलम
प्यार में होते देखे हमने किसी के वारे न्यारे
मुकद्दर भी कहां सब को नसीब होता है
किस्मत के फर्श पर हमने अक्सर
देखे, अर्श से उतरते बेशुमार तारे।
त्रिलोचन सिंह अरोरा