सामना संवाददाता / कल्याण
कल्याण में शिंदे गुट के पूर्व नगरसेवक महेश गायकवाड़ को जान से मारने की धमकी का मामला सामने आने के बाद राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। महेश गायकवाड़ ने अंबरनाथ के शिवाजी नगर पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया है। गायकवाड़ ने बताया कि एक विवाह समारोह के दौरान एक अज्ञात व्यक्ति ने उनके हाथ में एक पत्र थमाया, जिसमें साफ तौर पर लिखा था, “एमजी, तू गणपत सेठ और वैभव गायकवाड़ के पीछे मत लगना, नहीं तो तेरा भी बाबा सिद्दीकी जैसा हाल होगा।”
महेश गायकवाड़ ने इस धमकी भरे पत्र को गंभीरता से लेते हुए संदेह जताया है कि यह पत्र जेल में इस्तेमाल किए जाने वाले कागज पर लिखा गया है। सवाल यह उठता है कि जब राज्य में महायुति की सरकार है, तो एक जेल में बंद आरोपी का नाम धमकी से जुड़ना किस ओर इशारा करता है?
यह मामला केवल धमकी तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे यह भी साफ हो रहा है कि सत्ता के गलियारों से आरोपियों को संरक्षण मिल रहा है। गौरतलब है कि भाजपा के पूर्व विधायक गणपत गायकवाड़ पर महेश गायकवाड़ को गोली मारने का आरोप है। इस हमले में महेश गायकवाड़ और एक युवक गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस मामले में गणपत गायकवाड़ पिछले एक साल से जेल में बंद हैं, लेकिन महेश गायकवाड़ का आरोप है कि गणपत गायकवाड़ को “बड़े आका” का आशीर्वाद मिला हुआ है, जिसके चलते वह पंद्रह दिन जेल में और पंद्रह दिन अस्पताल में बिताते हैं।
सवाल यह है कि राज्य में कानून का राज है या रसूखदारों का? जब एक पूर्व विधायक पर हत्या के प्रयास का आरोप हो और वह जेल में रहकर भी धमकी भरे पत्र भेजने में सक्षम हो, तो राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। महेश गायकवाड़ ने विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गणपत गायकवाड़ की पत्नी सुलभा गणपत गायकवाड़ को कड़ी चुनौती दी थी। हालांकि, महायुति में शिवसेना और भाजपा के गठबंधन के कारण महेश गायकवाड़ को पार्टी से टिकट नहीं मिला, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
अब सवाल यह है कि जब राज्य में महायुति की सरकार है, तो क्या कानून-व्यवस्था पर भी महायुति का नियंत्रण है? अगर जेल में बंद व्यक्ति के नाम से धमकी भरा पत्र बाहर आ सकता है, तो यह सत्ता के संरक्षण का मामला नहीं तो और क्या है? पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस जांच का परिणाम भी रसूखदारों के दबाव में ही तय होगा या फिर कानून का राज कायम होगा?