कविता श्रीवास्तव
चार साल पहले कोरोना ने सारी दुनिया को झकझोर दिया था। सब अपने घरों में सिमटकर रह गए थे। खैर, उससे तो हम उबर गए। लेकिन उसके साइड इफेक्ट्स अभी भी देखे जा रहे हैं। हाल के दिनों में हृदयाघात, ब्रेनस्ट्रोक व दिल की अन्य बीमारियों के बढ़ने का एक कारण कोरोना का असर भी बताया जाता है। बीते दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमिक्रॉन के बीए.२.८६ वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में अतिरिक्त म्यूटेशन से उपजे जेएन १ वैरिएंट के पाए जाने की पुष्टि की थी। महाराष्ट्र में भी कुछ मरीज मिले थे। मुंबई में भी इसके संक्रमण का खतरा बताया गया था। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने लोगों को मास्क पहनने, बार-बार हाथ धोने और सार्वजनिक समारोहों में सतर्क रहने का आग्रह किया था। क्योंकि एक वक्त था जब कोरोना को हल्के में लेने की गलती भारी पड़ी थी। अब कोरोना नियंत्रण में जरूर है। लेकिन कई लोगों ने मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग भी जारी रखा है। इन बातों से कोरोना के दौर की कुछ अविस्मरणीय यादें अक्सर ताजा होने लगती हैं। इन्हीं यादों में मुझे एक आटोरिक्शावाले ने कई रोचकता भरी बातें बताईं। दरअसल, हमारी बिल्डिंग के ठीक नीचे ऑटोरिक्शा स्टैंड है, जहां कुछ ऑटोरिक्शा वाले नियमित मिलते हैं। वे आसपास के ही रहिवासी हैं और वर्षों से यहीं आटोरिक्शा चलाते हैं। वे सभी स्थानीय लोगों के परिचित हैं। इन्हीं में एक है मनीष, जिसे लॉकडाउन के पहले दिन से लेकर पूरे कोरोना भर मैंने बेधड़क ऑटोरिक्शा चलाते हुए देखा। सख्ती के कुछ दिनों में वह नहीं दिखा था। लेकिन जैसे ही ऑटोरिक्शा वालों को अनुमति मिली मनीष नियमित ऑटोरिक्शा लिए हमारी बिल्डिंग के नीचे हमेशा तैनात रहता था। मानो उसने कोरोना से दोस्ती कर ली हो और कोरोना उसको कुछ नहीं करेगा। मनीष कोरोना के पहले भी मिलता था और आज भी मिलता है। वह बड़े खुश मन से कहता है कि कोरोना में मैंने अच्छी कमाई की। इसी तरह अधेड़ावस्था में पहुंचे ऑटोरिक्शा चालक तिवारीजी भी हैं। कोरोना के पहले वे अक्सर हमें स्टेशन पहुंचाते रहे हैं। आज भी ऑटोरिक्शा लिए मिल जाते हैं। लेकिन कोरोना के पूरे दौर में वे कहीं दिखाई ही नहीं दिए। फिर जब मिले तो उन्होंने बताया कि जैसे ही मौका मिला वे आठ-दस ऑटोरिक्शा वाले एक साथ उत्तर प्रदेश अपने गांव अपनी ऑटोरिक्शा लेकर ही चले गए थे। तिवारीजी बताते हैं कि रास्ते भर लोगों के मिले सहयोग की अविस्मरणीय यादें आज भी उन्हें रोमांचित कर देती हैं। रास्तेभर लोगों ने खूब सहयोग किया। कहीं भोजन की व्यवस्थाएं, कहीं ठहरने-सोने की व्यवस्थाएं तो कहीं चाय-जलपान। रास्ते भर इस तरह वे बढ़ते रहे। लेकिन एक जगह उनकी ऑटोरिक्शा के काफिले में शामिल एक गर्भवती महिला को प्रसूति की समस्या हुई। वे जिस जगह थे वहां के गांववालों ने तुरंत ही खटिया, बिस्तर आदि का प्रबंध किया और उसकी प्रसूति करवा दी। उस काफिले में से वह परिवार वहीं रुक गया। बाकी लोग आगे बढ़ गए। कोई हफ्ते भर बाद वह परिवार नवजात शिशु को लेकर अपने गांव पहुंचा। जब वह नवांगतुक गांव आया तो उसके माता-पिता ने सबसे पूछा कि इसका नाम क्या रखा जाए। लोगों ने सलाह दी कि यह लॉकडाउन में पैदा हुआ है इसलिए इसका नाम लॉकडाउन रखा जाए। गजब की बात है कि उसके मां-बाप ने यह बात मान ली और उस बच्चे का नाम लॉकडाउन रख दिया। अब कोरोना नहीं है। जीवन सामान्य हो चुका है। जिंदगी नियमित रूप से चल रही है। ऐसे में हाल ही में एक दिन तिवारीजी हमें फिर मिल गए। मैंने जानना चाहा कि वह बच्चा वैâसा है? तो उन्होंने कहा बच्चा यहीं मुंबई में है। मैंने पूछा उसका कुछ नाम बदला? तो उन्होंने कहा नहीं उसका नाम लॉकडाउन ही है। यही उसका नाम रखा गया है। मैंने सोचा कि आगामी कुछ दशकों बाद हो सकता है लोग लॉकडाउन को किसी बुरी याद की तरह भूल जाएं। लेकिन लॉकडाउन का परिवार इस नाम के साथ लॉकडाउन को हमेशा याद करता रहेगा। लॉकडाउन की भय भरी यादों के साथ ही मानवता, परोपकार, उदारवादिता जैसी यादें भी लोग जरूर याद करेंगे। क्योंकि लॉकडाउन में भले एक-दूसरे को छूने, एक-दूसरे से दूर रहने का बुरा दौर हमने देखा। लेकिन इसके साथ ही एक-दूसरे की मदद, परस्पर सहयोग और लोगों का जीवन बचाने के लिए जिस ढंग से लोग सक्रिय हुए थे, वह भी सदियों तक याद रखा जाएगा। शायद यही कारण था कि कोरोना के बहुत बुरे दौर से हम पूरी मानवता को बचा पाए। उस दौर की खट्टी-मीठी यादें हमेशा सभी के जेहन में रहेंगी। लेकिन मानवता मुश्किलों से हार नहीं मानती है। विभिन्न सामाजिक संगठनों और संस्थाओं ने महामारी के दौरान जो सेवा की, वह अपने आप में अद्भुत है। लोगों ने फंसे हुए, परेशान और पीड़ितों के लिए पानी-भोजन की कमी नहीं होने दी। लोगों ने पैदल व वाहनों से मुलुक जा रहे लाखों यात्रियों को भोजन करवाया। इसलिए कोरोना काल हमें भले ही परेशानी दे गया लेकिन इस परेशानी के बीच में भी सुकून यह रहा कि मानवता एकजुट दिखी।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)