कविता श्रीवास्तव
देश में जबर्दस्त चुनावी माहौल है। विभिन्न पार्टियों और नेताओं में कांटे की टक्कर चल रही है। कोई अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता है तो कोई बचाना चाहता है। कोई हर तरफ छा जाना चाहता है तो कोई अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। इसी बीच उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क से खबर आई कि एक बाघ ने एक सांड़ पर हमला कर दिया। लेकिन वह सांड़ भी कम नहीं था। उसने बाघ से टक्कर ले लली। दोनों में भिड़ंत हुई। अंतत: उस सांड़ का आक्रामक मूड देखकर बाघ को पीछे हटना पड़ा और वह उसे छोड़कर अपनी जान बचाकर भागा। बाघ से टकराने के साहस पर ही सांड़ की जान बची।
इसी बात पर मुझे उत्तर प्रदेश में एक विवाह के दौरान हुई घटना याद आती है। वहां खेत में बने टेंट में हम सब नाश्ता कर रहे थे, तभी खेत की ओर सबका ध्यान गया, जहां एक नन्हें से सर्प ने एक बड़े से मेंढक को अपने मुंह में दबोच लिया था। मेंढक का आकार बड़ा होने की वजह से वह उस नन्हे से सांप के मुंह में समा नहीं रहा था। लेकिन उसकी जान सर्प के जबड़े में फंसी हुई थी। वह छोटा सा सर्प काफी प्रयास के बाद भी मेंढक को निगल नहीं पा रहा था। दूसरी ओर मेंढक लगातार प्रयास करने के बाद भी बाहर नहीं आ पा रहा था। इतने में उसी आकार का दूसरा मेंढक भी वहां दिखाई दिया। वह इधर-उधर फुदक रहा था। कुछ ही देर में वह छलांग लगाकर उस सर्प के मुंह में आधे फंसे हुए अपने मित्र मेंढक के ऊपर जा बैठा। उन दोनों के वजन और हलचल से अंतत: निराश होकर सर्प ने उस मेंढक को अपने मुंह से बाहर निकाल दिया और कुछ ही देर में दोनों मेंढक कूदते हुए वहां से चले गए। सर्प भी मुड़कर अपने रास्ते की ओर चला गया। हालांकि, कुछ लोग उसका वीडियो रिकॉर्डिंग भी कर रहे थे। कुछ लोग डंडे लेकर आए। कुछ लोग मजे लेते रहे। कुछ लोगों ने सर्प से बचने की हिदायत दी। लेकिन इन सबके बीच उस दूसरे मेंढक के साहस की सभी ने खूब प्रशंसा की। अद्भुत साहस दिखाकर वह खुद की जान को भी जोखिम में डालने से डरा नहीं। वह सांप के जबड़े पर जाकर अपने साथी को निकाल ले आया। इस तरह के उसके टकराने का स्वभाव देखकर सभी को ताज्जुब हुआ।
इधर आम चुनाव हो रहे हैं और पूरे देश में चुनावी रंग धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की ओर से मोर्चा संभाला हुआ है और इस बार ४०० सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है, लेकिन उनके सामने कांग्रेस भी डटी हुई है। भाजपा को उसी से डर है इसीलिए वह कांग्रेस पर लगातार हमलावर हैं। प्रधानमंत्री का कोई भी भाषण कांग्रेस पर आरोप मढ़े बिना पूरा नहीं होता। वे गांधी परिवार पर हमला करने से भी नहीं चूकते हैं। ऐसे में कांग्रेस अकेली पार्टी है, जो भाजपा के साथ पूरे देश में राजनीतिक युद्ध लड़ रही है। यह वैचारिक लड़ाई है और इसके केंद्र में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हैं, जो लगातार भिड़े हुए हैं। राहुल गांधी के पूर्वज सरकार में रहे हैं। उन्होंने देश की सत्ता संभाली है, लेकिन राहुल गांधी कभी मंत्री नहीं रहे। वे पार्टी मुखिया जरूर रहे हैं, लेकिन अब वे किसी पद पर भी नहीं हैं। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी भाजपा का निशाना लगातार उन्हीं पर रहता है, क्योंकि वे हमेशा आम जनता के मुद्दों को लेकर जूझते दिखते हैं। वे जन समस्याओं और विचारधारा को लेकर `भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए पूरे देश में अभियान चलाने वाले अकेले राजनेता हैं। वे हर दिन देश के मुद्दों को लेकर सीधे नरेंद्र मोदी से टक्कर ले रहे हैं। हालांकि, इंडिया गठबंधन की तमाम पार्टियों ने उनका साथ दिया है और विभिन्न राज्यों के अनेक दल उनके पीछे पूरी ताकत के साथ खड़े हैं। उनके टकराने के इसी मूड से भाजपा सत्ता में रहकर भी लगातार सहमी सी नजर आती है। कांग्रेस व सहयोगी दलों के इंडिया गठबंधन को जनता का अच्छा समर्थन भी मिलता जा रहा है। इसीलिए भाजपा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समीकरण फिट करती जा रही है। वह ऐसे दलों से भी समझौता किए जा रही है, जिनकी विचारधारा से उसका कभी कोई वैचारिक तालमेल ही नहीं रहा। वह अन्य दलों में बगावत कराकर, पार्टियों को तोड़कर, विधायकों को अपनी ओर मोड़कर किसी भी प्रकार अपनी राजनीतिक शक्ति बढ़ाने का हर प्रयास कर रही है। जिन पर खुद प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए ऐसे लोगों से गलबहियां करने पर भी भाजपा संकोच नहीं कर रही है। कहते हैं कि कुछ लोग ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स जैसी जांच एजेंसियों के डर से भी उसके आंचल में शरण ले रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई भी लोकतंत्र पक्ष और विपक्ष दोनों के तालमेल पर जीवित रहता है। यदि एक ही पक्ष का साम्राज्य स्थापित हो गया तो वह तानाशाही भी ला सकता है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए सत्ता से टकराने वाले भी जरूरी हैं। जनहित के विषयों पर सत्ता का विरोध होना भी जरूरी है। जहां-जहां गलतियां होंगी और जहां-जहां जनहित के मुद्दों पर अनुचित समझौते होंगे, वहां जनहित में एवं राष्ट्रहित में विरोध भी होगा। आम जनता की ओर से टकराने का यह स्वभाव ही लोकतंत्र की सुंदरता है। कोई भी आत्मसमर्पण अच्छी बातों के लिए तो ठीक है, लेकिन सार्वजनिक जीवन में जन समस्याओं को लेकर टकराना जरूरी होता है। उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघ से टकराने वाला सांड़ और सर्प से पंगा लेने वाले मेंढक भी यही संदेश देते हैं कि जहां जरूरत पड़े वहां टकराना चाहिए। टकराने पर ही जान बचती है। समर्पण कर देने से उनका जीवन ही समाप्त हो जाता। जिंदा रहना है तो टकराना जरूरी है। हक के लिए, न्याय के लिए, सच्चाई के लिए और सम्मान से जीने के लिए अक्सर लड़ना होता है।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)