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मुंबई में ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट बने मुसीबत! …बिना प्लान फ्लाईओवर्स के निर्माण ने बढ़ाई ट्रैफिक समस्या

सामना संवाददाता / मुंबई
मायानगरी मुंबई कभी देश के दूसरे शहरों के लिए एक मिसाल हुआ करती थी। शहर में लोकल ट्रेनों और बसों का बेहतरीन पब्लिक नेटवर्क था। सड़कें भी इतनी अच्छी थीं कि दूरी किलोमीटर में नहीं, समय में मापी जाती थी। यह मुंबई की कहानी है। जहां समस्या को सुलझाने की हर कोशिश ने नई समस्या पैदा की है। एक ऐसा शहर जहां फ्लाईओवर पर ट्रैफिक जाम होता है। ऐसा शहर जहां लोकल ट्रेनें खचाखच भरी रहती हैं। एक ऐसा शहर जिसने इन जाम को ठीक करने के लिए इतना पैसा खर्च किया है कि अब उसके पास बसें खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। अब मुंबई जाम वाली शहर बन गई है।
मुंबई में १९९० के दशक के अंत और २००० के दशक के शुरुआत में बहुत सारे फ्लाईओवर बने। वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर तो कई फ्लाईओवर बना दिए गए। जहां जाम लगता था, वहां फ्लाईओवर बनाने का चलन सा हो गया। बीकेसी, एयरपोर्ट, कलीना जैसे इलाकों में भी फ्लाईओवर बने। जेजे, लालबाग, दादर टीटी, सायन एक ही सड़क पर कई फ्लाईओवर बनते गए। हर नया फ्लाईओवर पुराने फ्लाईओवर से होने वाले जाम को कम करने के लिए बनाया गया, लेकिन ट्रैफिक जाम की समस्या जस की तस है। मुंबई में ट्रैफिक जाम कम करने के लिए बनाए गए फ्लाईओवर अब खुद जाम का कारण बन रहे हैं। बिना सोचे-समझे फ्लाईओवर बनाने से हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। मुंबई के प्लानर्स इसे जानते हैं, फिर भी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
पूरा शहर खोद डाला
सरकार ने मेट्रो ३ लाइन बनाने के लिए पूरे शहर को खोद डाला और उसके प्राकृतिक वातावरण को नष्ट कर दिया। यह लाइन कफ परेड (दक्षिण मुंबई) से बीकेसी और अंधेरी तक जाती है। इस दौरान, वे भूल गए कि अब दक्षिण मुंबई व्यापारिक केंद्र नहीं रहा। ज्यादातर लोग जो बीकेसी और अंधेरी में काम करते हैं, वे दक्षिण मुंबई में नहीं रहते। यह रूट अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है, इसलिए मुंबई को अभी यह पता नहीं चला है कि यह लाइन कितनी मददगार होगी। लेकिन, अगर आंशिक रूप से खुले रूट से अंदाजा लगाया जाए, तो इस लाइन का इस्तेमाल करना बहुत मुश्किल होगा।

बेस्ट बस नेटवर्क बर्बाद
मुंबई का कभी मशहूर बेस्ट बस नेटवर्क बर्बाद हो गया है। बसों की संख्या लगभग ५००० से घटकर १००० से भी कम हो गई है। क्योंकि हमारी सरकार का कहना है कि बेस्ट घाटे में चल रहा है और उनके पास इसे चलाने के लिए पैसे नहीं हैं। यही सरकार एक घाटे में चल रही मोनोरेल सेवा भी चलाती है और कहती है कि उसके पास खचाखच भरी मेट्रो १ लाइन के लिए अतिरिक्त डिब्बे खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।

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