पथिक

अवसाद की बर्फ अचेतन मन पर
इस तरह बिछ जाती है,कि
अकेले पन की पीड़ा की अग्नि
सम्पूर्ण जीवन इसे न पिघला पाती
इंद्रधनुषी सपने झूला झुलाते
वास्तविकता का दर्पण नहीं दिखाते
अवधारणाओं पर सम्राज्य जीता है
समाज के बिमार विचारों में।
बीते अतीत पर भविष्य वाणी करना
आदत है आलोचनाओं से भूख मिटाना
लांछनों का पैबंद धवल वस्त्रों पर चिपकाना
कहानी पर कहानी गढ़ते चले जाना।
अंतरालों में बीतता जीवन वैसे ही क्रूरता सहता है
कोई हाथ सोहार्द का नहीं उठता
पालता नहीं कोई परिवर्तन विचारों का
जीवन का पथ खोजते-खोजते
पथिक बनना पड़ता जीवन भर।
आकांक्षाओं का कम होना देता अधिक सांत्वना
सजगता,चेतनता अपनत्व आवश्यक है
जीवन में छलावे मिटाने के लिए।
बेला विरदी।

अन्य समाचार