अजय भट्टाचार्य
श्री रामचरित मानस के उत्तर कांड में उपरोक्त चौपाइयों के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास ने कलियुग के पाखंड की भविष्यवाणी कर दी थी-
मारग सोइ जा कहुं जोइ भावा।
पंडित सोइ जो गाल बजावा
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई।
ता कहुं संत कहइ सब कोई
सोइ सयान जो परधन हारी।
जो कर दंभ सो बड़ आचारी
जौ कह झूठ मसखरी जाना।
कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी।
कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी
जाकें नख अरु जटा बिसाला।
सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला
अर्थात जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं।
जो (जिस किसी प्रकार से) दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दंभ करता है, वही बड़ा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हंसी-दिल्लगी करना जानता है, कलियुग में वही गुणवान कहा जाता है। जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान है। जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएं हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है।
इसलिए यदि आप अपने आस-पास कुछ ऐसा देखें तो विचलित न हों, लेकिन उत्तर कांड से पहले सुंदर कांड में भगवान श्रीराम ने कहा है-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा
अर्थात जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते।
उन भगवान राम की भक्ति करने के लिए वैâमरों और पाखंड की जरूरत नहीं है। भगवान राम ने अवतारी होते हुए भी कभी यह घोषणा नहीं की कि वे मां कौशल्या के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुए थे। हां, यह जरूर है कि यह रहस्य उनके और मां कौशल्या के बीच ही रहा। मां कौशल्या ने चतुर्भुज राम (विष्णु) के दर्शन करने के बाद कहा था कि जिनके प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेक ब्रह्मांडों के समूह (भरे) हैं। वे मेरे गर्भ में रहे-इस हंसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए। वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अत: उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो। तो जब अयोध्या में जन्मभूमि शिलान्यास के समय बाल राम को पाखंडी अवतारी लाल की उंगली थामे जाते हुए दिखाया गया था। भगवान राम ने भी उन तस्वीरों को देखा होगा और जन्मभूमि मंदिर उद्घाटन के वे दृश्य भी देखे होंगे, जिनमें देश का कोई भी गरीब आमंत्रित नहीं था। अयोध्या की जनता तो घरों में नजरबंद कर दी गई थी। पाखंड अपना काम कर चुका था। देश में रामनवमी से पहले ही रामनवमी और दिवाली मनाने का इवेंट हुआ और चुनाव में राम को बेचने की रणनीति बनी। अब प्रभु राम की बारी थी। चुनाव परिणाम में भगवान राम ने दिखा दिया कि अयोध्या तो ‘अवधेश’ की ही है। इस परिणाम से पाखंड फिर अपने वीभत्स रूप में प्रकट हुआ और अयोध्यावासियों के बहिष्कार का फतवा जारी हुआ। पाखंड भूल गया कि राम का आगमन ही पाखंड के खात्मे के उद्देश्य के साथ हुआ था। अत: भगवान राम ने फिर संदेश दिया और जुम्मा-जुम्मा आठ दिन पहले बने भव्य भवन की छत टपक पड़ी।
राम जन्मभूमि के जो शिखर बने हुए नजर आ रहे हैं, वह असली नहीं हैं। बल्कि टेंट हाउस की तर्ज पर, बांस बल्ली से बनाए गए नकली शिखर हैं। गर्भ गृह के ठीक ऊपर वही जगह है जहां प्लास्टिक बांस, बल्ली लोहे के पाइप से शिखर बनाया गया। अयोध्या के कथित कायाकल्प नमूने के जगमग फोटो दिखाकर गोदी मीडिया के जरिए पूरे देश को भ्रम में रखा गया। जब तक शंकराचार्य ने बवाल नहीं मचाया, किसी को अंदेशा भी नहीं हुआ कि यह नकली शिखर हैं। तो जो यह शिखर वाली जगहें हैं… वही पानी के रिसाव का सबसे बड़ा स्रोत बन गई है। दूसरा चूंकि पत्थरों की चिनाई, नहीं बल्कि इंटरलॉकिंग की गई है। उनकी ऊपरी सतह को सील तो करना ही होगा। अभी तो शुरुआत है साहब, जरा मानसून को परवान तो चढ़ने दीजिए, इसके अलावा भी अभी ५० से ज्यादा ऐसी जगहें सामने आएंगी, जहां से जमकर रिसाव होगा।
रिसाव का तात्कालिक इलाज तो वही देसी है… जैसे बरसात में गरीब झुग्गी-झोपड़ियों के ऊपर पॉलिथीन की पन्नी बांधकर अपना गुजारा करते हैं। अंध-भक्तों के मुताबिक, सूर्याभिषेक की तर्ज पर इस जलाभिषेक का स्थाई इलाज तो तभी संभव है, जब तीसरी मंजिल बनकर जल्द तैयार हो और विधिवत शिखर भी। तब तक राष्ट्रीय गर्व के इस महान स्मारक को कुछ समय के लिए ही सही अंतर्राष्ट्रीय शर्मिंदगी की चादर से ढंकना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)