अजय भट्टाचार्य
गधा पेड़ से बंधा था। शैतान आया और उसे खोल गया। गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और खड़ी फसल को खराब करने लगा। किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला। गधे की लाश देखकर गधे के मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी। किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी। गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया। बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरा कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी। इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था, ऐसा क्यों हुआ? शैतान ने कहा, ‘मैंने कुछ नहीं किया। मैंने सिर्फ गधा खोला, लेकिन तुम सबने प्रतिक्रिया दी, जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दी और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। इसलिए अगली बार किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक क्षण के लिए रुकना और सोचना जरूर’ ध्यान रखें। कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी विनाश हम खुद कर देते हैं!! हर रोज टीवी चैनलों पर गधे छोड़े जाते हैं। कोई सार्वजनिक संवाद के समूह में गधा छोड़ देता है। कोई मुखपोथी पर गधा छोड़ जाता है। इस छोड़े हुए गधे के चक्कर में हम-आप मिलकर उन मुद्दों को पीछे छोड़ देते हैं, जिन्हें सबसे आगे होना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, शांति, सद्भाव पर गधा भारी पड़ जाता है। पिछले दिनों एक भोजपुरिया नट ने धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हमारे-आपके युवा बच्चे-बच्चियों से हथियार उठाने का आवाहन किया। इसके ठीक दूसरे दिन उसने अपनी लड़की के साथ फोटो डाली और लिखा कि बिटिया लंदन से पढ़कर आ गई है। अब यह भी फिल्मों में काम करने के लिए तैयार है। मतलब आपके बच्चे हथियार उठाकर दंगाई बनें और उनके बच्चे? पानी को सिर्फ पिया ही नहीं जाता, उसमें मरा भी जाता है। कोई पानी में डूब कर मर जाता है, कोई पानी के लिए तड़पकर मर जाता है। कोई पानी के कारण पीट-पीटकर मार दिया जाता है। सौ साल पहले जब हमारे कुछ पूर्वज पानी के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब हमारे कुछ और पूर्वज पानी के पास बैठकर प्रभु मिलन और आत्मा की मुक्ति पर चिंतन कर रहे थे। तय कीजिए आप किस तरफ हैं? मरनेवालों की तरफ या मारनेवालों की तरफ? क्योंकि यह तय करने का वक्त है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)