अंतिम सत्य

अनायास काया हल्की हो गई,
कपास के गोले जैसी अनुभूति हुई,
और मैं बादलों सी विचरने लगी
वायु मंडल में !
नासिका ने दैवीय कुसुम की
महक ग्रहण की,
गात पर होने लगी पुष्पित
पंखुड़ियों की वृष्टि,
असीमित आनंद भर गया,
और देह कांति से दमक उठी !
मंदिर की घंटियों का निनाद
आत्मा को तृप्त करने लगा
क्षण भर मे तन का आवरण
कसमसाने लगा,
जैसे सर्प केंचुली से निकलने का प्रयास कर रहा है !
विस्मित नयनों में गहन अंधकार छा गया,
झनझनाहट से तन अस्थिर हो गया,
तपन दर्द मोह रिश्तों का
झंझावात आ गया,
हंस उड़ गया अकेला,
शांत शरीर धरा पर रह गया,
यह है मेरा अंतिम शाश्वत
सत्य से साक्षात्कार…!
-बेला विरदी

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