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फडणवीस सरकार में अनएडेड शिक्षकों का बुरा हाल…सुप्रिया सुले ने सरकार के कामकाज पर उठाया सवाल

सामना संवाददाता / मुंबई

शिक्षक को समाज की रीढ़ माना जाता है, समाज और भावी पीढ़ी का भविष्य बनाने की बड़ी जिम्मेदारी शिक्षक वर्ग पर होती है। हालांकि, गैर अनुदानित स्कूलों के शिक्षकों के जीवनयापन का मुद्दा हमेशा चर्चा में रहता है। एक तरफ शिक्षकों के वेतन को लेकर अक्सर टिप्पणियां की जाती हैं। शिक्षकों को मिलने वाले वेतन को ज्यादा बताया जाता है, लेकिन गैर गैर अनुदानित संस्थाओं में शिक्षकों का मुद्दा गंभीर है। शिक्षक धनंजय नागरगोजे की आत्महत्या के मामले को लेकर सुप्रिया सुले ने सरकार को आईना दिखाया है।
उन्होंने कहा कि बीड जिले के एक आश्रम स्कूल में १८ साल तक शिक्षक के रूप में काम करने के बावजूद न तो वेतन मिला और न ही स्थाई होने की गारंटी। संस्था प्रमुखों द्वारा किए गए उत्पीड़न से तंग आकर एक युवा शिक्षक ने आत्महत्या कर ली। धनंजय नागरगोजे ने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक भावुक पोस्ट लिखकर मौत को गले लगा लिया। इस घटना ने शिक्षा क्षेत्र में हलचल मचा दी है और यह घटना दिल दहला देने वाली है। सांसद सुप्रिया सुले ने भी बीड की घटना का जिक्र करते हुए सरकार के सामने सवाल उठाए हैं। साथ ही, उन्होंने शिक्षकों के मुद्दों को हल करने की मांग की है।
उन्होंने कहा कि जिस संस्था में ये अनएडेड शिक्षक काम करते हैं, उस संस्था के प्रमुखों द्वारा वेतन नहीं दिए जाने के बावजूद बेगारी मजदूर की तरह उनसे काम करवाया जाता है। सालों तक उन्हें उनके काम का मेहनताना नहीं दिया जाता, फिर वे अपना घर वैâसे चलाएं? इस सवाल का जवाब न तो संस्था प्रमुख देते हैं और न ही सरकार। उन्होंने कहा कि इससे परेशान बीड के एक गैर-सहायता प्राप्त शिक्षक ने फेसबुक पोस्ट करके अपनी जान दे दी, जिससे महाराष्ट्र स्तब्ध है। सांसद सुप्रिया सुले ने इस मामले पर ट्विटर पर पोस्ट लिखकर सरकार को आईना दिखाया है। उन्होंने कहा कि शिक्षक धनंजय द्वारा आत्महत्या करना अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। क्रांतिसूर्य महात्मा ज्योतिबा फुले और क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले ने महाराष्ट्र में समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा पहुंचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उसी महाराष्ट्र में एक शिक्षक को आत्महत्या का रास्ता अपनाना पड़ता है, यह राज्य के लिए शर्म की बात है।
क्या है मामला?
धनंजय नागरगोजे बीड के केलगांव स्थित आश्रम स्कूल में शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे। पिछले १८ साल से वे इस स्कूल में काम कर रहे थे, लेकिन १८ साल से उन्हें वेतन नहीं मिलने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई। इसी वजह से उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। इस घटना के बाद गैर गैर अनुदानित शिक्षकों का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है।

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