मुख्यपृष्ठसंपादकीयअसामयिक फटका... किसानों की ‘गारंटी' कौन लेगा?

असामयिक फटका… किसानों की ‘गारंटी’ कौन लेगा?

प्रकृति की अनियमितताओं के कारण आनेवाली लगातार आपदाएं मानो महाराष्ट्र के किसानों की पैदाइशी से ही उनके पीछे पड़ गई हैं। ऐसा लगता है कि प्रकृति ने मन ही बना लिया है कि किसान सुखी न रहें। पिछले एक पखवाड़े से लगातार दूसरी बार महाराष्ट्र के कई जिलों में तूफानी हवाएं, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हुई है और इससे खेतों में पकी हुई फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। राज्य के विदर्भ, उत्तरी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में जगह-जगह ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश का दौर जारी है। इसके अलावा मौसम विभाग का कहना है कि ओलावृष्टि और खराब मौसम का ये कहर अभी कुछ दिनों तक ऐसे ही जारी रहेगा। इस बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को चिंता सता रही है कि उनकी फसलों को और कितना नुकसान होगा। दरअसल, जनवरी के महीने में ठंड का असर खत्म हो जाता है और फरवरी की शुरुआत में गर्मी की तपिश शुरू हो जाती है। वैसे ही सूरज की तपिश भी शुरू हो गई थी। खेत में खड़ी गेहूं, ज्वार, चना आदि फसलों को सुखाने के लिए कटाई से पहले बढ़े तापमान की जरूरत होती है। हालांकि, कुछ दिनों तक वातावरण में गर्मी रहने के बाद मौसम बदला लेकिन पिछले १५ दिनों में विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र में दो बार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हुई। किसानों के हाथ-मुंह तक आया गेहूं, चना, ज्वार की फसलों का निवाला प्रकृति ने छीन लिया है। कई किसानों ने गेहूं और ज्वार को काटकर सूखने के लिए खेतों में ढेर लगा दिया था, जबकि कुछ किसानों की फसल पक चुकी थी। लेकिन तेज हवाओं के साथ हुई बारिश ने थ्रेसिंग मशीन में जाने के लिए तैयार गेहूं को भिगो दिया और खड़ी फसलों को तेज हवाओं एवं बारिश से भारी नुकसान हुआ। जब भारी बारिश से पीले पके गेहूं के भीग जाने से गेहूं के हर दाने पर सफेद धब्बे पड़ जाएंगे और गेहूं का रंग भी बदल जाएगा तो ऐसे दागदार और सफेद गेहूं की बाजार में कोई कीमत नहीं मिलेगी। चने की भी यही कथा है। कटने के लिए तैयार चने की सूखी फलियां हवा और बारिश से टूट गईं और चने के दाने कई स्थानों पर मिट्टी में मिल गए। यह चना अब वहीं पर ही अंकुरित हो जाएगा। पिछले दो वर्षों में ज्वार की कीमत में बढ़ोतरी के कारण किसानों ने इस सीजन में बड़ी मात्रा में ज्वार बोया था। लेकिन तैयार ज्वार पर भी गेहूं और चने की तरह बुरा असर पड़ा। खराब मौसम और ओलावृष्टि से न केवल ये तीन फसलें प्रभावित हुईं, बल्कि सब्जियां, शेड-नेट में बड़े निवेश वाली फसलें और हजारों हेक्टेयर तरबूज या कलिंगर की फसलों पर भी बेमौसम की बुरी मार पड़ी है। किसानों को चिंता सता रही है कि बेमौसम बारिश से किसानों द्वारा कड़ी मेहनत से उगाए गए तरबूजों पर काले धब्बे पड़ जाएंगे और १० रुपए प्रति किलो बिकने वाले तरबूज का दाम २ रुपये भी मिलेगा या नहीं। इसके अलावा आम, मोसंबी, अनार और अंगूर के बगीचों को भी खराब मौसम और ओलावृष्टि से भारी नुकसान हुआ है। आमों के गुच्छे झड़ गए हैं। कई जगहों पर कच्चे मोसंबी टूट कर बागों में पड़े हैं। पिछले तीन-चार दिनों से विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि जारी है। इस खराब मौसम ने उन फसलों और बगीचों को भारी नुकसान पहुंचाया, जिन्हें किसान कई दिनों से दिन-रात मेहनत कर उगा रहे थे। इस बीच मौसम विभाग ने २ मार्च तक ‘येलो अलर्ट’ जारी कर दिया है और किसानों की सांसें अटकी हुई हैं। पिछले कुछ दिनों से बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से किसानों की खड़ी फसल और बाग-बगीचों को भारी नुकसान हुआ है, लेकिन सरकार राजनीतिक दलों और नेताओं की सेंध लगाने में लगी हुई है। राजस्व प्रशासन भी आगामी चुनाव की तैयारियों में जुटा हुआ है। असामयिक मौसम से हुए नुकसान का पंचनामा कब होगा और किसानों को कब मदद मिलेगी, इसकी किसी को फिक्र नहीं है। बर्बाद किसानों की मदद की ‘गारंटी’ कौन लेनेवाला है?

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