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यूपी का वन विभाग करेगा उल्लुओं की पहरेदारी!.. दिवाली पर बलि दिए जाने का है खतरा

आगरा की चंबल सेंक्चुअरी की बाह रेंज में लक्ष्मी का वाहन माने जाने वाले उल्लू की दो प्रजातियां मुआ और घुग्घू मौजूद हैं। मुआ पानी के आस-पास और घुग्घू पुराने खंडहरों और पेड़ों पर रहते हैं। दोनों के नर-मादा एक जैसे होते हैं। नदी किनारे के टीलों की खुखाल, खंडहर और पेड़ों पर इनका दिखना आम है। वहीं दिवाली पर संपन्नता के लिए उल्लू की बलि का अंधविश्वास प्रचलित है। वजन, आकार, रंग, नाखून, पंख के आधार पर बलि के लिए उल्लू की तस्करी का खतरा बढ़ने से वन विभाग ने पहरेदारी तेज कर दी है।
रेंजर उदय प्रताप सिंह के अनुसार, उल्लू का वैज्ञानिक नाम स्ट्रिगिफोर्मिस है। दिवाली पर उल्लू की बलि के अंधविश्वास से रेंज में पहरेदारी बढ़ा दी है। ६० वन समितियों एवं तटवर्ती ग्रामीणों को जागरूक किया है। उल्लू को मारने और पकड़ने वाले लोग दिखने पर सूचना देने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि, सेंक्चुअरी में तस्करी के मामले अभी नहीं हुए हैं, फिर भी वन विभाग सतर्क है। मुआ- मुआ के ऊपर के पर कत्थई, दुम गहरी भूरे रंग की, गला सफेद होता है। इसकी चोंच टेढ़ी और गहरी मटमैली हरी, पैर धूमिल पीले रंग के होते हैं। बता दें कि भारतीय वन्य जीव अधिनियम, १९७२ की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित श्रेणी का पक्षी है। उल्लू के शिकार या तस्करी पर कम से कम तीन वर्ष सजा का प्रावधान है।

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