आजकल भारतीय करोड़पति और व्यवसायी यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि जब दुनिया के सबसे बड़े अमीर लोग अपनी संपत्ति की गिनती अमेरिकी डॉलर में करते हैं, तो क्या हमारी संपत्ति की गणना भी इसी मुद्रा में की जानी चाहिए? क्या डॉलर ही एकमात्र मानक हैं या दुनिया में और भी कोई मुद्रा हैं, जिसे हम अपने संपत्ति के हिसाब से प्राथमिकता दे सकते हैं? यह सवाल भारतीय आर्थिक परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण विषय बन गया हैं, खासकर जब हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं।
सबसे पहले, यह समझना जरूरी हैं कि अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे प्रचलित और स्थिर मुद्रा मानी जाती हैं। दुनिया के अधिकांश देशों में व्यापार, निवेश और वित्तीय लेन-देन अमेरिकी डॉलर में होते हैं। अमेरिकी डॉलर का यह दबदबा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतना मजबूत हैं कि इसे “ग्लोबल स्टैंडर्ड” माना जाता हैं।यही कारण हैं कि जब दुनिया के अरबपति अपनी संपत्ति का हिसाब बताते हैं, तो वे इसे अमेरिकी डॉलर में ही बताते हैं। इसका उद्देश्य स्पष्ट हैं—अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह सबसे सामान्य और स्वीकार्य तरीका हैं, जिससे लोग एक दूसरे से अपनी संपत्ति की तुलना कर सकते हैं।
अब, क्या डॉलर से मजबूत कोई अन्य मुद्रा हैं? इसका उत्तर हाँ और नहीं दोनों में हैं। यद्यपि कुछ देशों की मुद्राएं डॉलर के मुकाबले मजबूत होती हैं, जैसे स्विस फ्रैंक (CHF), ब्रिटिश पाउंड (GBP) या यूरो (EUR) लेकिन इनका वैश्विक व्यापार में उतना व्यापक उपयोग नहीं हैं।उदाहरण के लिए, स्विस फ्रैंक या यूरो, भले ही डॉलर के मुकाबले मूल्य में मजबूत हो सकते हैं, लेकिन ये मुद्राएं वैश्विक स्तर पर उतना प्रभावी नहीं हैं। इसलिए, इनका उपयोग अरबपतियों की संपत्ति की गणना में कम होता हैं।
यहां पर एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है: अगर अन्य मुद्राएं डॉलर से ज्यादा मूल्यवान हैं, तो फिर क्यों अरबपतियों की संपत्ति डॉलर में ही गिनी जाती हैं? इसका सीधा सा जवाब हैं, अमेरिकी डॉलर का अंतरराष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन में वह स्थान हैं, जो कोई और मुद्रा नहीं रखती। डॉलर में संपत्ति की गणना करने से एक वैश्विक संदर्भ मिलता हैं, जो भारतीय अरबपतियों और व्यवसायियों के लिए भी समझना जरूरी हैं।यदि हम अपनी संपत्ति का मूल्य केवल भारतीय रुपये (INR) या किसी अन्य मुद्रा में करेंगे, तो इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई महत्वपूर्ण अर्थ नहीं होगा। इसके अलावा, डॉलर का इस्तेमाल करते हुए, वैश्विक स्तर पर हमारी संपत्ति की तुलना अन्य अरबपतियों से आसानी से की जा सकती हैं।
इसलिए, भारतीय करोड़पतियों को यह समझना चाहिए कि अमेरिकी डॉलर सिर्फ एक मुद्रा नहीं हैं, बल्कि एक वैश्विक वित्तीय मानक हैं। भारतीय रुपये या अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में संपत्ति की गणना करने से हमें अपने व्यवसायिक और वित्तीय निर्णयों को एक व्यापक और सटीक परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद मिलती हैं। भारतीय अरबपतियों के लिए यह जरूरी हैं कि वे अपने निवेश और संपत्ति की गणना डॉलर में करे, क्योंकि यह उन्हें वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में अपने स्थान को सही से समझने में मदद करेगा।
इसलिए, भारतीय करोड़पतियों को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि डॉलर की तुलना में कोई अन्य मुद्रा बेहतर हैं, क्योंकि अमेरिकी डॉलर का महत्व आज भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे ऊपर हैं। अगर हमें वैश्विक वित्तीय दुनिया में अपनी स्थिति मजबूत करनी हैं, तो हमें अपने व्यवसाय और संपत्ति की गणना अमेरिकी डॉलर में ही करनी होगी।