शिवपूजन पांडे, वरिष्ठ पत्रकार
जौनपुर। उत्तर प्रदेश में पड़ रही कड़ाके की ठंड के बीच प्राइमरी से लेकर डिग्री कॉलेज तक के शिक्षण संस्थानों को 15 जनवरी तक बंद रखा गया है। प्राइमरी और डिग्री कॉलेज में पहले से ही इसे छुट्टी की श्रेणी में शामिल किया गया है, परंतु हाईस्कूल और इंटर कॉलेज में जिस तरह से छुट्टी घोषित की गई है, वह पूरी तरह से हास्यास्पद और अंधे फरमान की तरह नजर आ रही है। हाईस्कूल और इंटर के बच्चों को जहां स्कूल आने से रोका गया है, वहीं शिक्षकों को पूरे समय तक विद्यालय में उपस्थित रहने का आदेश दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि यह शिक्षकों के लिए वर्किंग डे है तो उससे विद्यार्थियों को क्या लाभ? एक तरफ जहां प्राइमरी स्कूलों और डिग्री कॉलेजों में इसे अवकाश के रूप में लागू किया गया है, वहीं हाईस्कूल और इंटर कॉलेज में सिर्फ बच्चों को अवकाश दिया गया है। इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को लौहपुरुष मानकर उन्हें प्रतिदिन स्कूल आने का निर्देश दिया गया है। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है। इस प्रकार का अंधा फरमान बहुत पहले से चल रहा है। प्राइमरी स्कूलों को लेकर योगी सरकार ने अच्छा निर्णय लिया।
ग्रीष्मावकाश में से कटौती कर शीतावकाश के रूप में इसे घोषित कर दिया गया। देखा जाए तो लकीर का फकीर बनी हुई शिक्षण व्यवस्था लगातार कमजोर होती जा रही है। शिक्षाविदों का साफ मानना है कि भाजपा शासित राज्यों में शिक्षा को लेकर सरकार की गंभीरता दिखाई नहीं देती। भाजपा की लाख आलोचना के बावजूद दिल्ली का शिक्षा मॉडल पूरे देश में आदर्श बना हुआ है। वातानुकूलित कमरों से बाहर निकलकर सही और जमीनी निर्णय लेना जरूरी है। सरकार को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस सरकारी स्कूलों का दावा करने के बावजूद उसके प्रति लोगों में विश्वास और रुझान कमजोर क्यों हो रहा है?