मनमोहन सिंह
उत्तराखंड सरकार के क्या कहने! एक तरफ दावा कर रही है कि वह देवभूमि को जड़ी-बूटी, आयुष प्रदेश बनाएगी, उत्तराखंड को २०२५ तक नशामुक्त प्रदेश बनाएगी, लेकिन दूसरी तरफ खुद उत्तराखंड सरकार इसे शराब प्रदेश बनाने पर तुली हुई लग रही है। दरअसल, राज्य सरकार की एक नई योजना है। इस योजना के तहत वह उत्तराखंड में मिलने वाली जड़ी-बूटियों और उत्तराखंड के उत्पादों माल्टा, पल्म, काफल आदि से शराब का निर्माण करने जा रही है। मेट्रो शराब का निर्माण राज्य की डिस्टलरीज में ही किया जाएगा। नई आबकारी नीति के तहत नई मेट्रो शराब बिकेगी। इस शराब को विदेशी शराब की दुकानों के जरिए बेचा जाएगा।
जहां हिंदुस्तान में निर्मित अंग्रेजी शराब में अल्कोहल की मात्रा ४२.८ होती है और देसी शराब में अल्कोहल की मात्रा ३६ से २५फीसदी के बीच होती है, वहीं मेट्रो शराब में अल्कोहल ४० फीसदी होगा। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के पांच जिले-टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पौड़ी और चमोली में देसी शराब की बिक्री नहीं होती। लेकिन इन इलाकों में भी यह शराब बिकेगी।
महिलाएं कर चुकी हैं विरोध
वैसे भी उत्तराखंड में अंग्रेजी और देसी शराब बिकती ही है और दूसरे राज्यों से शराब की तस्करी भी होती है। इसके साथ-साथ कच्ची शराब बनाने का अवैध व्यवसाय भी चलता रहता है। शराब को लेकर उत्तराखंड में लगातार आंदोलन चलते रहे हैं। विशेषकर महिलाओं ने कच्ची शराब के ठेके तो छोड़िए सरकारी शराब ठेके के खिलाफ भी खूब धरना-प्रदर्शन किया है, लेकिन सरकार इसे गंभीरता से लेने तैयार नहीं दिख रही है।
सरकारी तंत्र इलेक्शन मोड पर
अब इस शराब को लेकर आबकारी महकमे का तर्क सुनिए। महकमे का कहना है कि इस शराब की वजह से पड़ोसी राज्यों से होने वाली शराब तस्करी पर रोक लगेगी और राजस्व भी बढ़ेगा। अब जो सरकार राजस्व बढ़ाने के बारे में सोचेगी वह आम लोगों की तकलीफों पर क्या ही ध्यान देगी? फिलहाल, सरकारी तंत्र इलेक्शन मोड पर है।
४० लाख से अधिक युवा मताधिकार का करेंगे प्रयोग
उत्तराखंड में समस्याएं इस तरह से दिखाई देती हैं, जिस तरह से एक पर्वत के पीछे दूसरा पर्वत और दूसरे पर्वत के पीछे तीसरा। बेरोजगारी युवाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। इस बार लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड के १८ से ३९ साल तक की उम्र के तकरीबन ४० लाख से अधिक युवा अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे और इनमें से तकरीबन ८.५ लाख युवा बेरोजगार हैं।
हर पांचवां युवा मतदाता बेरोजगार
रिपोर्ट के अनुसार, इस दफा ४०,३३,७२८ युवा मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे। अब बेरोजगारी की बात करें तो उत्तराखंड के सेवायोजन कार्यालयों में ८,८३,३४६ बेरोजगार पंजीकृत हैं। इसमें ५,४०,६८३ पुरुष और ३,४२,६६३ महिलाएं शामिल हैं यानी राज्य में २१.९० फीसदी युवा मतदाता बेरोजगार हैं। दूसरे नजरिए से देखें तो हर पांच में से एक युवा मतदाता बेरोजगार हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। २०१९ में प्रदेश में ८,०३,८८७ बेरोजगार पंजीकृत थे। २०२० में इस संख्या में कमी आई और बेरोजगारों की संख्या ७७८,०७७ तक पहुंची। हालांकि २०२१ में यह संख्या ८,०७,७२२, २०२२ में ८,७९,०६१, २०२३ में ८,८२,५०८ और २०२४ में बेरोजगारों की संख्या ८,८३,३४६ तक बढ़ गई है।
बेरोजगारी के विरोध में प्रदर्शन
पिछले दिनों बढ़ती बेरोजगारी के मुद्दे के साथ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के नेतृत्व में देहरादून में पद यात्रा निकाली गई थी। इस दौरान हरीश रावत की यात्रा में कांग्रेस के तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे और भाजपा सरकार पर जमकर निशाना साधा था। दरअसल, इस बार भाजपा बेरोजगारी के मुद्दे से बुरी तरह डरी हुई है। उसे याद है कि वैâसे एक बार उत्तराखंड बेरोजगार संघ के तहत उत्तराखंड के युवा बेरोजगार भाजपा की टैगलाइन `मैं भी चौकीदार’ के खिलाफ `मैं भी बेरोजगार’ लिखकर लामबंद हो गए थे। बेरोजगार के मुद्दे पर भाजपा के हाथ पांव फूले हुए हैं।
बेरोजगारों के जिलेवार आंकड़े
सबसे ज्यादा बेरोजगार देहरादून और हरिद्वार में हैं। सेवायोजन कार्यालय में दर्ज आंकड़ों के अनुसार, देहरादून में १,२१,२६८ और हरिद्वार में १,१३,११० बेरोजगार पंजीकृत हैं। इसके अलावा अल्मोड़ा में ७२,०५३, पिथौरागढ़ में ५६,५९६, बागेश्वर में ३३,१०४, ऊधमसिंहनगर में ९२,३९६, नैनीताल में ७५,९४६, चम्पावत में १७,८३८, टिहरी में ८१,७३०, उत्तरकाशी में ५१,७८३, पौड़ी में ७०,८२६, चमोली में ६२,९८० और रुद्रप्रयाग में ३३,७१६ बेरोजगार पंजीकृत हैं। सरकारी दावों की हकीकत दिखाते इन आंकड़ों पर गौर किया जाए तो समझ में आता है कि सरकार बेरोजगारी के नाम पर युवाओं के साथ कितना बड़ा मजाक कर रही है। विडंबना तो यह है कि बेरोजगारों के आंकड़े में लगातार बढ़ोतरी ही हो रही है।