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कंगाली के कगार पर उत्तराखंड सरकार! … राजभवन-सीएम आवास के टैक्स भरने को नहीं हैं पैसे

– कई सरकारी भवनों पर भी करोड़ों का टैक्स बकाया
– बार-बार नोटिस के बाद भी नहीं कराया जमा

सामना संवाददाता / मुंबई
भाजपा शासित उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति इतनी खस्ताहाल हो गई है कि राजभवन, सीएम निवास सहित कई सरकारी भवनों पर करोड़ों रुपए टैक्स बकाया है। टैक्स भरने के लिए संबंधित विभाग की ओर से बार-बार नोटिस भेजने के बाद भी टैक्स नहीं भरा जा रहा है। इससे ऐसी चर्चा होने लगी है कि उत्तराखंड सरकार दिवालिया हो गई है यानी कंगाल हो गई है।
गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड को कई सरकारी भवनों से बकाया भवन कर नहीं मिल रहा है, इनमें राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक शामिल हैं। बोर्ड ने कई बार संबंधित विभागों से पत्राचार भी किया पर कुछ नहीं हुआ। ऐसे में स्टाफ और पेंशनर्स को वेतन-भत्ते तक देने में दिक्कत हो रही है। इतना ही नहीं बजट के अभाव में विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। दो साल से चुनाव भी नहीं हुए। गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में मुख्यमंत्री आवास, राजभवन, बीजापुर गेस्ट हाउस, एफआरआई, व्हाइट हाउस सहित कई प्रमुख सरकारी भवन हैं। इन सभी पर टैक्स के रूप में छावनी परिषद का लाखों रुपए सालाना बनता है। इनमें से कुछ भवनों ने कुछ समय पूर्व अपना कर अदा कर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री आवास का टैक्स २००९ से अदा नहीं हुआ।
मुख्यमंत्री आवास पर ८५ लाख से ज्यादा का टैक्स बकाया है। राजभवन पर करीब २३ लाख रुपए का कर था, जिसमें से १३ लाख रुपए जमा किए जा चुके हैं। राजभवन पर करीब १० लाख रुपए अभी भी बकाया हैं। बीजापुर गेस्ट हाउस पर २० लाख से ज्यादा बकाया है। बताया जाता है कि बीजापुर गेस्ट हाउस जब से बना, तब से एक बार ही पांच लाख रुपए जमा कराए गए।
सबसे बुरी हालत एफआरआई की है। एफआरआई पर करीब कई करोड़ रुपए बकाया थे, जब कैंट बोर्ड ने बार-बार पत्राचार किया तो बताया गया कि एफआरआई को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है। आधा हिस्सा एफआरआई का है, जबकि बाकी आधे में सेंटर एकेडमी स्टेट फॉरेस्ट और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी का क्षेत्र है। जिसके बाद २.६३ करोड़ की वसूली के लिए एफआरआई और दो करोड़ के लिए बाकी दोनों संस्थानों को बिल भेजा है।

गढ़ी कैट छावनी बोर्ड का करोड़ों रुपए सरकारी कार्यालयों पर बकाया है। समय-समय पर संबंधित विभागों के साथ पत्राचार किया जाता है। बावजूद इसके कई ने अब तक भुगतान नहीं किया है।
-हरेंद्र सिंह, सीईओ, गढ़ी कैंट बोर्ड

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