संदीप पांडेय / मुंबई
जब उज्मा का जन्म हुआ, तो उसकी मासूम हंसी और चमकती आंखों ने उसके माता-पिता के जीवन में खुशियां भर दीं, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, माता-पिता ने महसूस किया कि वह आवाजों पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। शुरू में उन्होंने इसे एक सामान्य देरी समझा, लेकिन समय के साथ उनकी चिंता बढ़ने लगी। तीन साल की उम्र में उज्मा को विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास ले जाया गया और जो खबर मिली, उसने माता-पिता को झकझोर कर रख दिया। डॉक्टरों ने बताया कि उज्मा जन्म से ही सुनने में असमर्थ थी। यह खबर किसी आघात से कम नहीं थी, लेकिन माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारी और जल्द से जल्द उचित इलाज कराने का पैâसला किया।
कॉक्लियर इंप्लांट से जगी एक नई उम्मीद
कई विशेषज्ञों से परामर्श के बाद उज्मा के माता-पिता ने कुर्ला में स्थित क्रिटिकेयर एशिया मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. संजय हेलाले से कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी कराने का निर्णय लिया। डॉ. हेलाले अपने गुरु स्वामी हरी चैतन्य पूरी जी महाराज के मार्गदर्शन में कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी को बढ़ावा दे रहे हैं। जब उज्मा का एमआरआई किया गया तो रिपोर्ट में पता चला कि बच्ची के दोनों कान में कॉक्लियर नर्व नहीं थे, जिसके कारण कॉक्लियर इंप्लांट का फायदा होने की संभावना कम हो जाती है। इसके बावजूद बच्ची के परिवार वालों ने हिम्मत जुटा कर ऑपरेशन कराने का निर्णय लिया, जो कि सफल रहा, जबकि कई जगहों पर ऑपरेशन के लिए मना किया गया था।
पुनर्वास और कड़ी मेहनत
सर्जरी के बाद उज्मा को सुनने और बोलने के लिए गहन थेरेपी से गुजरना पड़ा। नियमित स्पीच थेरेपी, माता-पिता की मेहनत और डॉक्टरों की देखरेख में उज्मा धीरे-धीरे आवाजों पर प्रतिक्रिया देने लगी। शब्दों की पहचान करने से लेकर छोटे-छोटे वाक्य बोलने तक, उसकी प्रगति किसी चमत्कार से कम नहीं थी। उज्मा को एक सामान्य स्कूल में दाखिला मिला, वह उसके माता-पिता के लिए सबसे गर्व का क्षण था।
माता-पिता की प्रेरणादायक कहानी
उज्मा के माता-पिता अपनी यात्रा को याद करते हुए कहते हैं, ‘जब हमें पता चला कि हमारी बेटी सुन नहीं सकती, तो हमारी दुनिया जैसे ठहर गई, लेकिन हमने हार नहीं मानी। हमने हर संभव कोशिश की और डॉक्टर हेलाले सर की मदद से उज्मा को नई जिंदगी मिली है। आज वह आम बच्चों की तरह स्कूल जा रही है, यह हमारे लिए सबसे बड़ी जीत है।’