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काशी में नव संवत्सर के स्वागत में हुए विविध धार्मिक आयोजन…सनातनी पंचांग सहित अनेकों साहित्य का विमोचन संपन्न हुआ

उमेश गुप्ता / वाराणसी

नव संवत्सर २०८२ के शुभारंभ पर काशी केदारघाट स्थित श्री विद्या मठ में विविध धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए। इस अवसर पर भारत वर्ष सहित समस्त विश्व में भारतीय मान्यता के अनुसार चलने वाले करोड़ों आस्तिकों का विगत अनेक वर्षों से काल गणना, व्रत, पर्व, यात्रा, अनुष्ठान तथा समस्त क्रियाकलापों में सहायक ये सनातनी पंचांग, जिसे सनातन धर्म के सर्वोच्च चारों शांकर पीठ का शुभाशीर्वाद सदा से प्राप्त है, उसका विमोचन पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: महाराज के करकमलों से संपन्न हुआ। इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागीय आचार्य शत्रुघ्न त्रिपाठी, विद्याश्री चैरिटेबल ट्रस्ट के न्यासी अविनाश अंतेरिया, ग्लोरियस एकेडमिक के गिरीशचंद्र तिवारी उपस्थित रहे।
इस अवसर पर ज्योतिर्मठ द्वारा संकलित परमाराध्य चित्रावली का विमोचन हुआ, इसमें वर्षभर के चित्र का संक्षिप्त संकलन किया गया है। गंगा औषधि केंद्र के रवि त्रिवेदी, रमेश उपाध्याय, अभयशंकर तिवारी द्वारा शंकराचार्य जी के करकमलों से ज्योतिर्मठ दिग्दर्शिका का विमोचन संपन्न हुआ।
इस अवसर पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: ने समस्त संतानियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आप सबको वर्तमान सृष्टि के १ अरब ९५ करोड़ ५८ लाख ८५ हजार १२६वें वर्षारंभ की अनेकानेक शुभकामनाएं और शुभाशीर्वाद।
यह गिनती हमें परंपरा से मिली है, जिसे हम सृष्टि के पहले दिन से प्रतिदिन किए जाने वाले अपने प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य के आरंभ में किए जाने वाले संकल्प के माध्यम से ताजा रखते आए हैं। यहां ज्ञातव्य है कि पहला संकल्प स्वयं ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना का आरंभ करते हुए लिया था।
चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।
शुक्ले पक्षे समग्रे तु तथा सूर्योदये सति।।
यह सत्य सनातन धर्म है, जो सृष्टि के आरंभ से आज इतने वर्ष बीत जाने पर भी जीवमात्र के कल्याण के लिए जागृत और प्रवहमान है। हमें गर्व है कि हम उसी परमधर्म के पालक अनुयाई हैं, अत: परमधार्मिक हैं।
वैसे तो वर्तमान विश्व में धार्मिक होना प्रतिष्ठा का विषय नहीं रहा है, क्योंकि यह समय धर्म की अपेक्षा विज्ञान का माना जा रहा है और लोगों में यह धारणा भर दी गई है कि धार्मिक होना वैज्ञानिक चिंतन से परे होकर अंधपरंपरा का निर्वाहक होना है।
प्राय: ऐसा हो भी रहा है कि धर्म के नाम पर संगठित समूह अपने आध्यात्मिक उन्नयन के स्थान पर गोलबंदी करते हुए सामाजिक संगठन अथवा भौतिक बल अर्थात राजनैतिक सत्ता की प्राप्ति का प्रयास कर रहे हैं।
जब से किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा अथवा उसके नाम पर धर्म के समूह संगठित हुए हैं, तब से ही यह समस्या बढ़ी है और धर्म क्रमश: पीछे छूटता गया है और गिरोहबंदी तेज होती गई है। हमारा यह मानना है कि धर्म के क्षेत्र में धर्मोपदेष्टा का महत्व तो है, पर जब हम उस उपदेष्टा को धर्म के शाश्वत मूल्यों के ऊपर रख उसका अंधानुकरण आरंभ कर देते हैं तो अनर्थ वहीं से आरंभ हो जाता है और उसी दिशा में आगे बढ़ते रहने से तो प्राय: कुछ ही दिनों में वह अनर्थ महान अर्थात भयंकर हो जाता है।
इसलिए एक सच्चा सनातनी या परमधार्मिक हर उपदेष्टा का आदर तो करता है, पर किसी व्यक्ति विशेष से बंधता नहीं है और धर्म के शाश्वत मूल्यों को अपने जीवन में समाहित कर अपना आध्यात्मिक उन्नयन कर लेता है।
इतिहास का अनुशीलन करने पर पता चलता है कि यह अनर्थ परंपरा कुछ हजार वर्षों से चली है और जब से चली है, तब से ही धर्म शब्द का माहात्म्य निरंतर घटता गया है और आज धार्मिक होना आधुनिक समाज में प्रगतिशीलता का बाधक और पिछड़ेपन का बोधक हो गया है।
इसे ऐसे समझें कि आंबेडकर के पहले नवबौद्ध नहीं थे। दस गुरुओं के पहले सिख नहीं थे। मोहम्मद पैगंबर के पहले मुस्लिम नहीं थे। ईसामसीह के पहले ईसाई नहीं थे। पैगंबर जरथुस्त्र के पहले पारसी नहीं थे। पैगंबर अब्राहम के पहले यहूदी नहीं थे। ऋषभदेव के पहले जैन नहीं थे। सिद्धार्थ गौतम के पहले बौद्ध नहीं थे। इसी तरह अपने-अपने संस्थापकों के पहले उन-उन का मत नहीं था, पर सत्य सनातन धर्म सदा से था।
आज धर्म की जो हानि हो रही है वह इन्हीं तथाकथित धर्मसंस्थापकों के कारण हो रही है, क्योंकि तत्तद्धर्मानुयायीजन अपने-अपने उपदेष्टाओं के पदचिन्हों को ही पकड़कर उसे ही धर्म मानकर बाकियों से लड़ने में अपनी ऊर्जा को जाया कर रहे हैं, जिसके कारण धर्म का वास्तविक तत्व उनकी पकड़ से छूट रहा है।
इसलिए हमारा पहला संदेश आप सबके लिए है कि धार्मिक बनना है तो किसी उपदेष्टा में ही उलझकर मत रह जाइए, अपितु सत्य-शाश्वत धर्म के मर्म को पकड़िए और उसे अपने जीवन में उतारिए, ताकि आपका यह मानव जीवन धन्य बने।
इस कार्यक्रम के माध्यम से अनेकों वर्षों से काशी के श्रीशंकराचार्य घाट पर योगाभ्यासियों को योग, आसन, प्राणायाम और गणेश वंदना, सूर्मनमस्कार, शिव परिक्रमा, विष्णु ध्यान और गंगा आरती हुई।

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