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वाहनों का शोर बढ़ा रहा है डायबिटीज, ब्रेन स्ट्रोक और दिल के रोग! …अध्ययन में हुआ खुलासा

सामना संवाददाता / मुंबई
आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में दिल का दौरा पड़ने की समस्या बढ़ती ही जा रही है। इसके साथ ही डायबिटीज और स्ट्रोक का भी खतरा बढ़ गया है, इसका मुख्य कारण प्रदूषण है। खासकर ध्वनि प्रदूषण के कारण पर्यावरण के साथ ही इंसानों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। हाल ही में हुए अध्ययन में एक धक्का दायक जानकारी सामने आई है। इस अध्ययन में बताया गया है कि वाहनों के शोर घातक हैं। इससे दिल के रोग, डायबिटीज और स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने विभिन्न बीमारियों के जोखिम कारकों को इंगित करनेवाले पैटर्न की पहचान करने के लिए महामारी विज्ञान के डेटा का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। उनके निष्कर्षों से पता चला है कि कार के शोर से स्ट्रोक, मधुमेह और हृदय रोगों जैसे खतरे बढ़ सकते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि सड़क पर कार के शोर में हर १०-डेसिबल की वृद्धि के पीछे हृदय रोग का खतरा ३.२ प्रतिशत बढ़ जाता है। रात में वाहनों के शोर के हानिकारक प्रभाव, अपर्याप्त नींद, रक्त वाहिकाओं में तनाव बढ़ना, सूजन और नाड़ी संबंधी रोगों में वृद्धि हो सकती है।
शोर को किया जा सकता है कम
जर्मनी के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर मेंज के वरिष्ठ प्रोफेसर और प्रकाशित अध्ययन के प्रमुख लेखक थॉमस मुन्जेल ने कहा है कि हमारे पास इसका पुख्ता सबूत है। यातायात के शोर को हृदय रोग नाड़ी संबंधी जोखिम कारक के रूप में पहचानते हैं। हवाई और सड़क यातायात के साथ ही रेलवे समेत विभिन्न स्रोतों से वाहन के शोर को कम करने के लिए स्थानीय प्राधिकरण को लेकर नीति लाई गई है। घनी आबादी वाले इलाकों में भीड़भाड़ वाली सड़कों पर शोर कम करने वाले सिस्टम लगाना जरूरी है। गाड़ियों का शोर १० डेसिबल तक होना चाहिए। इसके अलावा सड़क निर्माण में शोर कम करनेवाले डामर के उपयोग से ३-६ डेसिबल की महत्वपूर्ण कमी हो सकती है। इसके अलावा उन्होंने गाड़ी चलाने की स्पीड को सीमित किए जाने और कम शोर करने वाले टायर के उपयोग को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया है।

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