मुख्यपृष्ठस्तंभविकास मार्टम : हवाई अड्डों के तर्ज पर हो बस अड्डों का...

विकास मार्टम : हवाई अड्डों के तर्ज पर हो बस अड्डों का संचालन

अनिल तिवारी मुंबई

समय की मांग है एकीकृत बस प्राधिकरण
आप लोगों को यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि देश में सबसे अधिक यात्रियों को ढोने का काम भारतीय रेलवे नहीं, अपितु भारतीय बसें करती हैं। तमाम राज्य सरकारों, नगर निकायों व निजी ऑपरेटरों द्वारा चलाई जाने वाली ये बसें यदि १ दिन के लिए भी बंद हो जाएं तो ७ से ८ करोड़ यात्री अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकेंगे। यह आंकड़ा कितना बड़ा है, इसे समझने के लिए मात्र यह समझ लेना आवश्यक है कि यह संख्या भारतीय रेलवे से यात्रा करने वालों से तीन गुना अधिक है। अर्थात, यात्री परिवहन में सड़क परिवहन प्रणालियां बेहद महत्वपूर्ण हैं, यह इन आंकड़ों से सुस्पष्ट हो जाता है। बावजूद इसके देश में सार्वजनिक सड़क परिवहन पर अधिक निवेश नहीं हो पाता, क्योंकि बस परिवहन में `जितना निवेश, उतना ही घाटा’ वाला फॉर्मूला आज भी यथावत जारी है।
एक रिपोर्ट के आधार पर यह पता चलता है कि देश में यात्रियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस समय ३० लाख से अधिक बसों की आवश्यकता है परंतु उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस वक्त सक्रिय बसों की संख्या मात्र ३ लाख ही है। मतलब प्रति १० हजार की आबादी पर यह आंकड़ा बमुश्किल ४ बसों का है, जो कम से कम १२ का होना चाहिए। चीन जैसे देश में यह ६० बसों का है, जो हिंदुस्थान की तुलना में १५ गुना अधिक है। ऐसे में सवाल उठता है कि यह आंकड़ा हिंदुस्थान में इतना कम क्यों है? तो इसका जवाब है देश की तमाम बस परिवहन प्रणालियों का भारी भरकम ढांचागत निवेश और उसके लिए लगने वाली उतनी ही बड़ी संस्थागत व्यवस्था।
एक अनुमान के आधार पर तमाम बस परिवहन प्रणालियां अपनी चल संपत्ति (रोलिंग स्टॉक) से कहीं अधिक निवेश अचल संपत्तियों (बस अड्डों, बस डिपो इत्यादि) पर करती हैं। चूंकि अचल संपत्तियां अधिक होती हैं तो उन पर निवेश भी अधिक होता है और उनके प्रबंधन के लिए बड़ा कार्यबल भी इस्तेमाल होता है। आंकड़े बताते हैं कि अमूमन एक बस के पीछे सरकारी व्यवस्था में औसतन ५ कर्मचारियों का स्टाफ कार्यरत रहता है। जिस पर भारी भरकम राजस्व खर्च होता है। नतीजे में बसों के रखरखाव में कटौती होती है, अपग्रेडेशन का काम बाधित होता है और पुरानी व खर्चीली डीजल बसें इलेक्ट्रिक जैसे सस्ते व प्रदूषण रहित विकल्पों में तब्दील होने से वंचित रह जाती हैं। रिपोर्ट बताती है कि देश की केवल ५६ स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग को ही प्रतिवर्ष १७ से १८ हजार करोड़ का नुकसान होता है। बस परिवहन प्रणालियों के पास रेलवे की तरह पैसेंजर लॉस को गुड्स ट्रांसपोर्ट से कंपनसेट करने का विकल्प नहीं होता, लिहाजा वो रखरखाव व अपग्रेडेशन में कटौती करके संतुलन बनाने का प्रयास करती हैं, जिसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ता है।
मुंबई, दिल्ली जैसी मेगा सिटीज से लेकर दूर-दराज के छोटे-छोटे गांवों तक देश में तमाम बस परिवहन प्रणालियां अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं। देश में इस समय ३६ के करीब राज्य सड़क परिवहन कॉरपोरेशन हैं तो ५६ से ६२ के बीच राज्य सड़क परिवहन अंडरटेकिंग। इसके अलावा देशभर में विभिन्न नगर निकायों की अपनी परिवहन व्यवस्था है पर इन सभी में शायद ही कोई सार्वजनिक सड़क परिवहन प्रणाली होगी जो मुनाफे में चल रही होगी। देश की तकरीबन सभी या अधिकांश बस परिवहन प्रणालियां घाटे में ही चलती हैं। अपने परिचालन को अबाधित और सुचारु बनाए रखने के लिए वे या तो विज्ञापन इत्यादि का मार्ग चुनती हैं या फिर अपनी संपत्तियों को लीज पर देने का रास्ता। इस पर भी जिन बस प्रणालियों का घाटा पट नहीं पाता, वे अपनी बसों का संचालन, रखरखाव व प्रबंधन निजी हाथों में सौंपने लगती हैं। देश के तमाम बड़े राज्यों से लेकर महानगरों की परिवहन व्यवस्था का यही हाल है परंतु वहीं दूसरी ओर देश में चलने वाली अधिकांश निजी बस कंपनियां मुनाफे में चलती हैं। वे सरकारी-अर्ध सरकारी या सरकार प्रायोजित बस सेवाओं से अच्छी सेवाएं भी देती हैं और उनकी बसों का रखरखाव भी बेहतर होता है। क्योंकि उनका ढांचागत निवेश लगभग शून्य के बराबर होता है। यही उनके मुनाफे का राज है। सरकारी सार्वजनिक सड़क परिवहन प्रणालियां भारी भरकम ढांचागत व संरचनात्मक निवेश करती हैं और उनके परिचालन का खर्च भी अधिक होता है। इसीलिए
भारत सरकार को भी चाहिए कि वह भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण के तर्ज पर भारतीय बस प्राधिकरण की स्थापना करे। जिस तरह हवाई प्राधिकरण देश के सभी हवाई अड्डों से संचालित होनेवाले हवाई यातायात के लिए प्रबंधन सेवा उपलब्ध कराता है, बदले में विमानन कंपनियों से शुल्क वसूलता है, उसी तर्ज पर एकीकृत बस प्राधिकरण की स्थापना करके बसों का प्रबंधन उन्हें सौंपा जा सकता है।
भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण एक वैधानिक निकाय है और यह नागरिक उड्डयन के बुनियादी ढांचे के निर्माण, उन्नयन, रखरखाव और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, उसी तर्ज पर देश में राज्यवार बस प्राधिकरण की स्थापना की जा सकती है, जो बस डिपो, बस अड्डे और बस टर्मिनल के निर्माण और विकास का जिम्मा उठाए। बदले में बस सेवा प्रदाताओं से शुल्क वसूले। जहां केवल सरकारी या शहरी बसों का एकीकृत टर्मिनल न हो, बल्कि वहां से निजी बसों को भी ऑपरेट करने की अनुमति हो।
उस तरह जिस तरह हवाई अड्डों पर होती है। हवाई अड्डे पर सरकारी विमानन कंपनी हो या निजी, सभी ऑपरेट होती हैं और बदले में हवाई अड्डा प्राधिकरण को शुल्क देती हैं। बसों के परिचालन के मामले में भी ऐसा ही करने से बस परिचालक और प्रबंधन दोनों का काम आसान हो सकता है। परिवहन प्रणाली भारी भरकम ढांचागत निवेश से बच सकती है, जबकि बस प्राधिकरण तमाम बस प्रणालियों व निजी कंपनियों को सेवाएं देकर ढांचागत निवेश से मुनाफा हासिल कर सकता है। ऐसा करने से काम का बंटवारा भी होगा और प्रबंधन में सुगमता भी आएगी। इतना ही नहीं, इससे शहरों की सड़कों और महामार्गों पर निजी बसों की अवैध पार्किंग से होने वाली ट्रैफिक समस्या और प्रदूषण पर भी अंकुश लग सकेगा।
आज नगरों-महानगरों में निजी बस ऑपरेटर किसी भी चौक-चौराहे पर बस खड़ी कर देते हैं। फिर लंबे वक्त तक बसें वहीं खड़ी रहती हैं। यात्रियों के चढ़ने- उतरने तथा सामान के लदने तक वहां सड़कें जाम रहती हैं। नतीजे में ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण के साथ प्रतिदिन लाखों मानवीय घंटों का नुकसान होता है। यदि यही बसें, बस प्राधिकरण के निर्धारित डिपो में खड़ी होंगी तो सड़क यातायात भी बाधित होने से बचेगा और बस यात्रियों को बस डिपो की सेवाएं भी प्राप्त हो सकेंगी। बदले में प्राधिकरण को राजस्व तो मिलेगा ही, वह रोजगार सृजन का भी अवसर पैदा करेगा।
कुल मिलाकर, एक ही शहर में तमाम बस प्रणालियों के अलग-अलग ढांचागत निवेश का खर्च सीमित करने के लिए इससे बेहतर उपाय कोई नहीं हो सकता। आज मुंबई जैसे शहर में राज्य परिवहन और बेस्ट परिवहन के लिए अलग-अलग बस डिपो बनाए गए हैं। यदि सरकार इन डिपो को एक कर दे और इसका प्रबंधन किसी बस प्राधिकरण के हाथ में सौंप दे तो ढांचागत निवेश सीमित हो सकता है। इसके लिए सड़क परिवहन और महामार्ग मंत्रालय को पहल करके राज्यवार आधार पर ऐसी संस्थागत प्रणाली विकसित करने पर जोर देना चाहिए। यदि सरकार ऐसा करती है तो, न केवल सड़कों पर यातायात की सुगमता होगी, बल्कि निवेश में कटौती और रोजगार की वृद्धि भी संभव हो सकेगी।

अन्य समाचार