चल पथिक

जीवन की इस जंग में इक जलजला उठा
तकदीर के इस जाल में तूफान उठा
इंसान वक्त से जूझता गुमनाम राहों पर चल पड़ा
मंजिलों की खोज में गुमशुदा राहों से लड़ पड़ा
बस गम से भरा मैदान उसे दिखा

बैठे बिठाइए कुछ बनता नहीं उठते उठाएं कुछ चलता नहीं
वक्त का मारा इंसान कुछ करता नहीं
खुशियों की खुशबू उसे सुंघाती नहीं
अरमानों की पोटली उसकी भर्ती नहीं
बस भाग दौड़ में जिंदगी चलती रही
हवा में उड़ना नदी में तैरना आता नहीं

चलता फिरता मुसाफिर है उसे रिझाना आता नहीं
बस अपने हौसलों का इस्तेमाल किए जा रहा है
जिंदगी की आरज़ू में मरे जा रहा है
बिना सौदा किए जिए जा रहा है

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