हम भी

हम भी नोट कमाने आए।
मन को कुछ समझाने आए।।
देखो यह बाजार लगा है।
इसमें मन बहलाने आए।।
हम भी इस भौतिक जीवन को ।
सबसे बड़ा बनाने आए।।
सामानों को ओढ़ लिए हम ।
मुश्किल सफर बनाने आए ।।
कहते हैं हम बड़े सुखी हैं।
जीवन राग सुनाने आए।।
क्षणभंगुर छोटे जीवन में ।
सारा बोझ उठाने आए।।
कहीं नहीं लेकर जाना था ।
फिर भी माल दबाने आए।।
संयम को जंजीर समझ कर ।
दुनिया नई बसाने आए।।
सदा त्याग को दुश्मन कहकर।
हरदम हबस बढ़ाने आए ।।
नैसर्गिक जीवन की बत्ती।
अपने हाथ बुझाने आए।।
धरती को माता कहते हैं।
फिर भी उन्हें रुलाने आए ।।
जो भी यहां कमाए हमने।
यहीं छोड़ कर जाने आए।।
जाते-जाते कह देते हैं।
हम केवल पछताने आए।।
प्यार लुटाना रहा जरूरी।
हम उसको दफनाने आए ।।
इसी भूल में जीवन भर का ।
सारा मूल्य गंवाने आए ।।
हम भी नोट कमाने आए ।
मन को कुछ समझाने आए ।।
-अन्वेषी

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