मुझमें तू है तुझमे मैं हूं कहने वाले सारे,
जब जलते हैं घर-गलियां तो रह जाते बस नारे।
उठते धुएं के गुब्बारों में छिपी हुई है किसकी मां,
रोते बच्चे की सिसकारी ढूंढ़ रही बस घर अपना।
ईंट चला कर बसें जलाकर वो अपने घर चले गए,
नाम कोई भी आए आगे अखिर हम तो छले गए।
कब खोलेंगे आंखें अपनी ये किस्मत के मारे,
मुझमें तू है…
मेरा धर्म है सबसे ऊंचा और सबसे गंभीर।
कहने वाले भूल रहे हैं अपनी ही तद बीर,
ठेले और खोमचे पर हम धर्म नहीं हैं खाते।
सभी जरूरत एक सी अपनी फिर क्यों ये दोहराते,
जीते हैं हम एक तरह हैं अपने एक सहारे।
मुझमें तू है…
अभी नहीं है बिगड़ा कुछ भी अब भी संभलो भाई।
नहीं रखा कुछ इन झगड़ों में छोड़ो ये लड़ाई,
नहीं अलग है राम खुदा से सब में वही विराजे।
ये तो हम इंसान हैं जो ईश्वर को भी बांटें,
एक रक्त है एक देश है एक दूजे के प्यारे।
मुझमें तू है…
-डॉ. कनक लता तिवारी