हम भी ऐसे ही थे

हम भी हर महफिल मे शामिल थे
हमे भी हर खुशी हासिल थी
हम भी हर किसी के काबिल थे
हमारी नाव के आगे भी साहिल थे
हम भी ऐसे ही थे
दया का सागर हम भी थे
दान-पात्र करने में हम भी बड़े माहिर थे
सेवा हम भी किया करते थे
मेवा हम भी दिया करते थे
इस बात के फूल-पत्ते भी गवाह हैं
जो हम पूजा में चढ़ाया करते थे
हम भी ऐसे ही थे
जिंदगी प्यार की नदी कहलाती थी
जिंदगी अपने आंचल में छुपाती थी
गम की लकीरें न थीं
रूठी तकदीरें न थीं
अंधेरे की कभी आदत नहीं थी
हम भी ऐसे ही थे
चांद और सूरज रोशनी दिया करते थे
जिंदगी खुशियों का सागर भी थी
अपनी हथेली में कलियां भी खिलती थीं
हमारा दिल था खुली किताब
सवाल-जवाब के तरक भी थे बेहिसाब
शब्द भी मीठे कहलाते थे
हर दिल को छू के जाते थे
अपना अंदाजे बयां कुछ ओर ही था
जिंदगी का सिलसिला कुछ ओर ही था
हम भी ऐसे ही थे
हर शाम महकता था आंगन फूलों से
हम भी करीब थे अपने वालों के
वक्त भी मेहरबान था
हर पल नई आशा-उमंगें थीं
कुछ कर-गुजरने की उम्मीदें थीं
हम भी ऐसे ही थे
अब न तू है न तेरा जनून
न हमें अपने आप पे गुरूर
अब हम ऐसे ही हैं।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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