प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा और हरियाणा के बाद एक बार फिर ‘इलेक्शन मोड’ में हैं। महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में येन-केन-प्रकारेण सफलता कैसे हासिल की जाए केंद्र की महाशक्ति इस वक्त इस मंथन में मशगूल है इसलिए जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में, जहां चुनाव खत्म हो चुके हैं, क्या हो रहा है, मोदी-शाह को इस बात पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं मिल रही होगी। जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों का सिलसिला जारी है। पिछले ४८ घंटों में जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों की चार घटनाएं हुईं। रविवार दोपहर श्रीनगर के टीआरसी मैदान के बाहर एक बाजार में आतंकियों ने भीषण ग्रेनेड हमला किया। बाजार में भीड़ का फायदा उठाकर आतंकियों ने इस साजिश को अंजाम दिया। इस ग्रेनेड हमले में १२ लोग घायल हो गए हैं। इनमें से कुछ गंभीर रूप से घायल हैं। आतंकी हमले की इस ताजा घटना के बाद हालांकि सेना के अधिकारी और पुलिस हमलावरों की तलाश में जुट गए हैं, लेकिन भीड़ में गायब हुए आतंकियों का पता लगाना अभी भी मुश्किलातभरा है। इससे पहले शनिवार को अनंतनाग के शांगस लारनू के जंगल में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें दो आतंकी मारे गए; लेकिन एक आतंकी अभी भी छिपा हुआ है और फायरिंग कर रहा है। श्रीनगर के खानयार और बांदीपुरा के पनेर में भी आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ चल रही है। इस गोलीबारी में केंद्रीय रिजर्व बल के दो जवान और दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। इससे पहले शुक्रवार रात को आतंकियों ने बडगाम में गैर-कश्मीरी मजदूरों पर हमला कर दिया था। आतंकी हमले में उत्तर प्रदेश से कश्मीर के जलजीवन प्रोजेक्ट में काम करने आए दो लोग घायल हो गए। अक्टूबर महीने में भी आतंकियों ने कश्मीर में पांच जगहों पर हमले किए थे। २८ अक्टूबर को अखनूर में नियंत्रण रेखा के पास आतंकवादियों ने सेना की एक एंबुलेंस पर गोलीबारी की। २४ अक्टूबर को पुलवामा जिले के बटगुंड में आतंकियों ने एक गैर-कश्मीरी मजदूर पर फायरिंग की थी। इससे पहले २० अक्टूबर को सोनमर्ग, गांदरबल में एक आतंकवादी हमले में एक डॉक्टर और मध्य प्रदेश के एक इंजीनियर समेत पंजाब और बिहार के पांच मजदूरों को जान गंवानी पड़ी। शोपियां में आतंकियों ने एक गैर-कश्मीरी युवक की भी गोली मारकर हत्या कर दी। संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है। कश्मीर के बाहर का कोई आकर यहां कदम रखेगा तो हम उसे गोली मार देंगे, इस संगठन का यही इरादा दिखता है। यह हिंदुस्थान की केंद्र सरकार को खुली चुनौती है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद से इन हमलों में अचानक बढ़ोतरी हुई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने सवाल किया है कि जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने के बाद ही आतंकवादी हमले क्यों बढ़े हैं? और केंद्र सरकार को इस सवाल का जवाब देना ही चाहिए। क्या उमर की सरकार को अस्थिर करने का काम किसी एजेंसी को तो नहीं दिया गया है? ऐसी शंका व्यक्त करते हुए डॉ. अब्दुल्ला की मांग है कि इन हमलों के पीछे वास्तविक तौर पर किसका हाथ है इस बात की छानबीन होनी चाहिए। जबकि जम्मू-कश्मीर में ‘टारगेट किलिंग’, ग्रेनेड हमले, गोलीबारी और मुठभेड़ की घटनाओं ने तांडव मचा रखा है लेकिन केंद्र की मोदी-शाह सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। आतंकवादी हमले क्यों बढ़ रहे हैं और उन्हें कैसे रोका जा सकता है, इस बारे में सरकार कुछ कर रही है, ऐसा दिखलाई नहीं पड़ता। जम्मू-कश्मीर में बढ़ते हमलों को लेकर बैठकें करने के बजाय महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव कैसे जीता जाए, इस पर दिल्ली में इस समय बैठकों का दौर चल रहा है। क्या २४ घंटे चुनाव की आपाधापी में खोई रहने वाली केंद्र सरकार कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमलों पर ध्यान देने के लिए वक्त निकालेगी?