मुख्यपृष्ठसंपादकीयमहाराष्ट्र की तिजोरी का बाप कौन?..मंत्रियों की मगरूरियत

महाराष्ट्र की तिजोरी का बाप कौन?..मंत्रियों की मगरूरियत

भारतीय जनता पार्टी का भारतीय संविधान से कोई लेना-देना नहीं रहा है। वरना, भारतीय संविधान की शपथ लेकर उसी संविधान से बेईमानी करने का पाप भाजपा के मंत्रियों ने नहीं किया होता। यह इस बात का संकेत है कि लोकतंत्र खत्म हो चुका है। फडणवीस सरकार में मंत्री नितेश राणे ने जहर उगला है कि यदि सरकारी निधि की जरूरत है तो भाजपा में शामिल हों, जहां महाविकास आघाड़ी का सरपंच होगा, वहां वे एक रुपया भी नहीं देंगे। क्या कुंभ स्नान से लौटे मुख्यमंत्री को अपने मंत्रियों की यह भूमिका स्वीकार्य है? मूलत: इन मंत्रियों ने भी कुंभ जाकर गंगा स्नान की तस्वीरें प्रसिद्ध की हैं, लेकिन क्या राजनीतिक विरोधियों और जनता के प्रति प्रतिशोध की भावना को गंगा स्नान का प्रतिफल माना जाए? यह मंत्रियों द्वारा संविधान के अनुसार ली गई शपथ के बिल्कुल विपरीत है। राज्यपाल मंत्री महोदय को शपथ दिलाते हैं। राज्यपाल संविधान के चौकीदार हैं। शपथ क्या कहता है, ‘मैं ईश्वर को साक्षी मानकर शपथ लेता हूं कि मैं कानून द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति आस्था और निष्ठा रखूंगा। मैं भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखूंगा। मैं राज्य मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का ईमानदारी और शुद्ध हृदय से पालन करूंगा। मैं बिना किसी डर, पक्षपात, द्वेष के संविधान और कानून के अनुसार सभी लोगों के साथ न्याय करूंगा।’ मंत्री ऐसे ही निष्पक्ष होकर कार्य करने की शपथ लेते हैं। इसे क्या कहा जाए कि महाराष्ट्र का एक मंत्री सार्वजनिक रूप से उस शपथ का कचरा कर देता है? मंत्री पूरे राज्य का होता है। किसी पार्टी या पार्टी के गुट का नहीं, लेकिन पिछले चार वर्षों से महाराष्ट्र में नफरत की राजनीति अपने चरम पर है।
गैर संवैधानिक सरकार के
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिंदे ने केवल अपने ही गुट के विधायकों और सांसदों को भर-भरकर निधि देने की नीति का पालन किया। हर एक विधायक ‘शिंदे’ गुट में जाकर ३००-४०० करोड़ की निधि लेकर आता था। इस निधि से किए गए कार्यों के बदले ठेकेदारों से ३५ फीसदी कमीशन लेने का उद्योग उस दौरान खूब फला-फूला। यदि नगरसेवक दलबदल करते थे तो उन्हें निधि के रूप में रिश्वत भी दी जाती थी। विपक्षी दल के विधायकों, सांसदों, नगरसेवकों को विकास निधि का एक रुपया तब भी नहीं मिला था और आज भी नहीं मिल रहा है। अब फडणवीस के मंत्री ने साफ कह दिया, ‘अगर गांव में महायुति का झंडा नहीं दिखा तो फंड बंद। मेरे नाम से जितना चाहे हंगामा करो, कोई फर्क नहीं पड़ता। अपना बॉस मजबूती से ऊपर बैठा है। मुझे चिंता नहीं है।’ अब ऐसी असंवैधानिक गतिविधियों का समर्थन करनेवालों का बॉस कौन है? मुख्यमंत्री फडणवीस को यह स्पष्ट करना चाहिए। मोदी कहते हैं, ‘सबका साथ, सबका विकास’ और महाराष्ट्र में उनके मंत्री कहते हैं, जो उनके जूते चाटेगा विकास सिर्फ उन्हीं का। ‘लोकतंत्र में विपक्षी दल की स्थिति भी महत्वपूर्ण है। चुनाव जीतकर सरकार बना लेने से आप राज्य के मालिक नहीं बन जाते। सरकारी तिजोरी मंत्री के घर की तिजोरी नहीं है। जनता के टैक्स का पैसा तिजोरी में जमा होता है और विकास निधि का प्रवाह वहीं से शुरू होता है। मंत्री के घर में पैसों की खदान होने के बावजूद उस खदान की एक दमड़ी भी विकास निधि में जमा नहीं होती है, फिर मंत्री जी किस मगरूरी में यह मुंहजोरी कर रहे हैं, जैसे कि वे खुद सरकारी तिजोरी के बाप हैं? महाराष्ट्र में यशवंतराव चव्हाण, वसंतराव नाईक, वसंतदादा पाटील, शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे
निष्पक्ष मुख्यमंत्री की परंपरा
है। उन्होंने राज्य के विकास का संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया। वे भुजंग की तरह विकास निधि पर कुंडली मारकर नहीं बैठे रहे, इसीलिए आज का विकसित महाराष्ट्र नजर आता है। कांग्रेस में आओ, एनसीपी में आओ, शिवसेना में आओ, तभी आपके गांव का विकास होगा, किसी ने कभी भी इस तरह का पक्षपातपूर्ण रुख नहीं अपनाया है, लेकिन वर्तमान मंत्री आज ग्राम पंचायत, सरपंच और जनता को धमकाने लगे हैं इसलिए मुख्यमंत्री का गंगा स्नान भी अपवित्र साबित हुआ। महाराष्ट्र का दुर्भाग्य है कि फडणवीस सरकार के मंत्री गांव के गुंडों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। जाति-धर्म को निशाना बनाकर धमकियां दी जा रही हैं और अब सीधे वोटरों को धमकाने लगे हैं। मोदी ने विदेश जाकर ट्रंप के सामने लोकतंत्र का ढोल पीटा और उनकी ही पार्टी के ‘बाटगे’ मंत्री सरकारी पैसों से लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं। ऐसे मंत्रियों को तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए और लोकतंत्र व संविधान की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। महाराष्ट्र अखंड और एक साथ है। लोकतंत्र में सभी को अपना विधायक, नगरसेवक, सरपंच चुनने का अधिकार है। इसी प्रक्रिया से मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री बने। लोकतंत्र में वोट खरीदकर विधायक और मंत्री बननेवाले कभी संविधान का मूल्य नहीं समझेंगे। मोदी देश के, राज्य के विकास की बात करते हैं, लेकिन जहां भाजपा का कोई सांसद, विधायक, सरपंच नहीं, क्या ये ‘बिंदु’ उन्हें विकास कार्यों से वंचित करेंगे? क्या इस क्षेत्र के लोग भारत के नागरिक नहीं हैं? फडणवीस, मोदी, जवाब दीजिए!

अन्य समाचार