सामना संवाददाता / मुंबई
मैंग्रोव शहर को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने, मछलियों के प्रजनन में मदद करने और प्रदूषण रोकने में अहम भूमिका निभाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (एमएमआर) में मैंग्रोव हर साल लगभग १,७०० करोड़ रुपए के पर्यावरणीय लाभ प्रदान करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि अकेले ग्रेटर मुंबई में मैंग्रोव से १,१५५ करोड़ रुपए की पारिस्थितिकीय सेवाएं मिलती हैं। बावजूद इसके, प्रशासन इनके संरक्षण की जिम्मेदारी निभाने के बजाय इसे जनता पर डाल रहा है।
एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण और शहरी इलाकों के लगभग ८० फीसदी लोग मैंग्रोव बचाने के लिए आर्थिक सहयोग देने को तैयार हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या पर्यावरण संरक्षण का पूरा बोझ जनता पर डालना सही है? सरकार हर साल बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन मैंग्रोव को बचाने के लिए उचित बजट और ठोस नीति अब तक नहीं लाई गई। आईआईटी बॉम्बे के शोध के मुताबिक, एमएमआर में लगभग २२,३०० हेक्टेयर और मुंबई में ६,५२२ हेक्टेयर मैंग्रोव क्षेत्र मौजूद हैं। इसके बावजूद इनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस सरकारी योजना नहीं बनी।
बिल्डरों और परियोजनाओं के लिए मैंग्रोव काटे जा रहे हैं, लेकिन प्रशासन इस पर कार्रवाई नहीं कर रहा। चक्रवात निसर्ग (२०२०) और ताउते (२०२१) के दौरान मैंग्रोव ने तटीय इलाकों को बचाया, फिर भी इनका संरक्षण प्राथमिकता नहीं है। शहरी इलाकों में नागरिक मानते हैं कि सरकार को ही संरक्षण की जिम्मेदारी उठानी चाहिए, लेकिन प्रशासन जनता से ही योगदान मांग रहा है।
पीछे हट रहा प्रशासन
शोधकर्ताओं ने ग्रामीण, शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में १५० घरों का सर्वे किया, जिसमें अर्ध-शहरी इलाकों (उरण) के लोग सबसे ज्यादा २१४ रुपए प्रति माह तक देने को तैयार थे, जबकि ग्रामीण लोग १५४ रुपए और शहरी लोग १४६ रुपए देने को तैयार थे। यह दिखाता है कि लोग पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं, लेकिन प्रशासन जिम्मेदारी लेने से पीछे हट रहा है।