-९७ हजार भारतीय जंगल के रास्ते अमेरिका पहुंचे
-१० वर्षों के भाजपा शासन में बेरोजगारी की समस्या हुई गंभीर
सामना संवाददाता / हिसार
हरियाणा विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच राहुल गांधी करनाल के घोघड़ीपुर गांव निवासी अमित मान के घर पहुंचे थे। दरअसल, अमित डंकी रूट से ही अमेरिका पहुंचा था और अब उसे वापस आने में दिक्कत हो रही है। डंकी रूट का मुद्दा सीधे बेरोजगारी से जुड़ा है और कांग्रेस का इस चुनाव में मुख्य मुद्दा ही बेरोजगारी का है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दो दशक से हरियाणा के युवा बड़ी संख्या में विदेश जा बसे हैं। इन बच्चों के परिजन और विपक्षी दल मानते हैं कि रोजगार की कमी से उनके बच्चे विदेश की ओर रुख कर रहे हैं। जब तमाम कोशिशों के बाद युवाओं का वीजा नहीं लगता है, तो वह डंकी रूट से विदेश जाते हैं। इसमें लाखों रुपए खर्च होते हैं और कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां झेलनी पड़ती है। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा अपनी हर सभा में डंकी रूट और बेरोजगारी का मुद्दा उठाते हैं। बीती जुलाई को संसद में सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने डंकी रूट का मुद्दा भी उठाया था। उन्होंने दावा किया कि पिछले एक साल में करीब ९७ हजार भारतीय नागरिक जंगल के रास्ते अमेरिका पहुंचे हैं। यूएस में १५ लाख ऐसे भारतीय नागरिक हैं, जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं है। उनके लिए दिक्कत आती है। रजिस्ट्रेशन से हम उनसे संपर्क रख पाते हैं। परेशानी होने पर उनकी मदद भी करते हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाल ही में अमेरिका यात्रा से लौटे हैं, जिसके बाद वह पिछले दिनों हरियाणा में करनाल के घोघड़ीपुर गांव में पहुंचे थे। यहां उन्होंने अमेरिका में रहनेवाले अमित के परिजनों से मुलाकात की। जो कि वहां सड़क हादसे में घायल हो गया था। अब राहुल गांधी ने हरियाणा सरकार पर तंज कसते हुए ‘एक्स’ पर पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा कि बड़ी संख्या में युवा बेहतर रोजगार और अवसरों की तलाश में विदेशों की ओर रुख कर रहे हैं। भाजपा सरकार के १० वर्षों के शासन में रोजगार के अवसरों में कमी के चलते यह स्थिति और गंभीर हो गई है। बेरोजगारी की इस बीमारी ने लाखों परिवारों को अपनों से दूर कर दिया है, जिससे न सिर्फ युवा, बल्कि उनके परिजन भी पीड़ित हैं। पिछले एक दशक में भाजपा सरकार ने युवाओं से रोजगार के अवसर छीनकर उनके साथ गहरा अन्याय किया है। टूटी उम्मीदों और हारे मन से मजबूर होकर ये युवा यातनाओं की यात्रा करने को विवश हो रहे हैं। हालांकि, यह स्पष्ट है कि अगर इन्हें अपने देश में, अपनों के बीच जीविका कमाने का पर्याप्त अवसर मिलता तो ये कभी अपना वतन छोड़ने को तैयार न होते।