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प्रतिशत क्यों गिरा?

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में मतदाताओं ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया। लफ्फाज नरेंद्र मोदी ने लफ्फाजी से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की, लेकिन मोदी की सभाएं भी विफल रहीं। उसी का बरअक्स पहले चरण के मतदान में देखने को मिला। मतदाताओं में घोर निराशा दिखी। यह तस्वीर भारतीय जनता पार्टी के ‘चारसौपार’ रथ के लिए अच्छी नहीं है और भाजपा के रथ के घोड़े पहले चरण में ही फंस गए हैं। पहले चरण में देश के १९ राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के १०२ लोकसभा क्षेत्रों में मतदान हुआ। उसमें महाराष्ट्र के विदर्भ के पांच निर्वाचन क्षेत्र हैं, लेकिन देशभर में औसतन ६२.३७ प्रतिशत मतदान के साथ, महाराष्ट्र का आंकड़ा ५५ प्रतिशत से नीचे आ गया। इसका मतलब यह है कि लोग मोदी जैसे नेताओं को लेकर उत्साहित नहीं हैं। यह पिछले दस वर्षों में मोदी और उनके लोगों द्वारा देश और जनता को धोखा देने का परिणाम है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ५० फीसदी लोगों का मतदान न करना अच्छा संकेत नहीं है। चुनाव आयोग लोगों को वोट देने के लिए बहुत बड़ा प्रचार तंत्र चलाता है, लेकिन वर्तमान लोकतंत्र का सबसे बड़ा दोषी देश का चुनाव आयोग ही है। चुनाव आयोग का काम तटस्थ और निष्पक्ष चुनाव कराना है, लेकिन पिछले दस सालों में चुनाव आयोग ने भाजपा के अंगवस्त्र के तौर पर काम किया है। दलबदल, दल में तोड़-फोड़, आयाराम-गयाराम जैसी प्रवृत्तियों को प्राथमिकता देकर भारतीय जनता पार्टी की अलोकतांत्रिक कार्रवाई का समर्थन किया। लोगों को अब चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं रहा, जो पार्टी को चुराने और तोड़ने में मदद कर रहा है।’ दूसरी अहम बात यह है कि मतदाताओं को ईवीएम पर भरोसा नहीं है। लोगों को संदेह है कि भाजपा ‘ईवीएम’ घोटाले से चुनी जाती है। कोई भी बटन दबाया तो वोट कमल को जाएगा तो फिर बटन न दबाना ही बेहतर है, इस नाराजगी के चलते भी लोग वोट देने के लिए निकलने को तैयार नहीं हैं। यह लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। लोग बैलेट पेपर पर ही चुनाव चाहते हैं और भाजपा पुरस्कृत चुनाव आयोग ईवीएम पर अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं है। चुनाव आयोग और भाजपा का हाथ मिलाना लोगों को स्वीकार्य नहीं है। परिणामस्वरूप, मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है। अजीत पवार जैसे लोग मतदाताओं को धमकाते और लालच देते हैं। चुनाव आयोग इस अपराध को खुली आंखों से देख रहा है। ऐसे में मतदाताओं से डर की स्थिति में बाहर आने की उम्मीद करना गलती होगी। भारतीय जनता पार्टी के दस साल के शासन से लोग निराश हैं। लोगों का मनोबल खत्म हो गया है। मोदी सत्ता में आएं या जाएं? अब हमारे बैंक खाते में कोई पंद्रह लाख रुपए नहीं आ रहे हैं, यही लोगों की मानसिकता है। शासकों की लफ्फाजी ही लोकतंत्र और चुनाव में बाधक है। भाजपा चार सौ का आंकड़ा पार करना चाहती है, लेकिन लोग मोदी पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। भाजपा शासित राज्य नागालैंड के छह जिलों में शून्य मतदान हुआ। इन छह जिलों में एक भी मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। एक संगठन ने वोट के बहिष्कार का आह्वान किया और लोगों ने उसे तवज्जो दी। केंद्र सरकार ने विकास के अपने वादे पूरे नहीं किए इसलिए लोगों ने पूर्वी राज्यों में वोट न देने का पैâसला किया। मणिपुर में ऐन मतदान के दिन फिर हिंसा भड़क उठी और ईवीएम जला दी गईं। उत्तर में मतदान प्रतिशत कम था, लेकिन दक्षिण में भारी मतदान हुआ। जब-जब मतदान का प्रतिशत गिरा, तब-तब देश में परिवर्तन हुआ। माहौल भाजपा के खिलाफ है। भाजपा समर्थक मतदाताओं को लगा नहीं कि उन्हें अपने घर से बाहर निकलना चाहिए। अब भी मतदान का गिरा प्रतिशत मोदी-शाह को घर भेज देगा। इस बात का संकेत देता है। ‘चारसौपार’ का नारा देकर भाजपा फंस गई है, लेकिन जनता उन्हें २०० के अंदर रोक देगी, पहले चरण के मतदान से यह तय हो गया है। यह सरकार और पक्षपाती चुनाव आयोग की विफलता है। राहुल गांधी ने हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार की पाठशाला चला रहे हैं। उसी स्कूल की एक शाखा है चुनाव आयोग। मतदान का प्रतिशत गिर गया है, ५० प्रतिशत से भी कम मतदाता देश की सरकार चुनने जा रहे हैं, कोई भी इस बात को गंभीरता से नहीं ले सकता। जनता की परवाह न करनेवाले चुनाव देश के लिए घातक होंगे। पिछले दस सालों में मोदी ने लोगों में झूठ भर दिया है। वह हवा साल २०२४ में निकल चुकी है। गिरता मतदान प्रतिशत भाजपा के लिए चेतावनी है।

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