वो तो भूल चुका है सब कुछ
मुझको भी वो बिसर क्यूं नहीं जाता है।
वादा किया था ताउम्र न मिलने का
अपने वादे से वो मुकर क्यूं नहीं जाता है
इतनी बेवफाई के बाद भी याद आता है वो
आखिर वो मेरे दिल से उतर क्यूं नहीं जाता
कितना चुभता है अधूरा ख्वाब आंखी में
आखिर ये ख्वाब टूट कर बिखर क्यूं नहीं जाता
कितनी नसीहतें देती हैं रोज मेरी मां मुझे
आखिर मैं अब सुधर क्यूं नहीं जाता
जाने क्यूं लोग करते हैं मेरा इंतजार खामखा
सबको मालूम तो है मैं अब उधर नहीं जाता।
-प्रज्ञा पांडेय मनु