मुख्यपृष्ठसंपादकीयशिवराय इससे सहमत होंगे क्या?

शिवराय इससे सहमत होंगे क्या?

छत्रपति शिवाजी महाराज की आज जयंती है। छत्रपति शिवाजी महाराज के कारण इतिहास के प्रवाह को एक नई दिशा मिली। छत्रपति शिवाजी महाराज की मुंबई में पहली प्रतिमा का अनावरण करते समय २६ जनवरी १९६१ को यशवंतराव चव्हाण ने कहा था कि अगर छत्रपती शिवाजी महाराज नहीं होते तो भारत का क्या होता, यह पूरी दुनिया जानती है। पाकिस्तान की सीमा ढूंढ़ने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। शायद वह आपके और मेरे घर तक भी पहुंच जाती। यशवंतराव के कहने का मतलब था कि अगर शिवाजी महाराज नहीं होते तो भारत के और भी बड़े हिस्से पर, शायद आपके और मेरे घर तक भी मुसलमानों की भारी आबादी होती और उस भूभाग पर भी पाकिस्तान ने दावा किया होता, यह सच है। `शिवराय का रूप याद करो, शिवराय का प्रताप याद करो’ जब रामदास ने शंभू राजा को यह लिखा था, तब उनकी नजर के सामने उस तेजस्वी राजा की धीर-गंभीर मुद्रा ही रही होगी। शिवराय का नाम लेते ही हर मराठी व्यक्ति का मन गर्व से भर जाता है। मान-अभिमान से ऊंचा हो जाता है और आदर से झुक जाता है। शौर्य और सहनशीलता, त्याग और तेज, उदारता और सत्यनिष्ठा जैसे कई गुणों से भरा हुआ वह महान जीवन। मराठी जीवन के साथ, महाराष्ट्र की मिट्टी के साथ, देश के भाग्य के साथ इतना एकरूप होने वाला छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा दूसरा व्यक्तित्व नहीं होगा। छत्रपती महाराष्ट्र में जन्मे यह महाराष्ट्र का सौभाग्य है। महाराज ने तलवार के बल पर `स्वराज्य’ बनाया और जो उनकी तलवार से टकराया उसे इसी मिट्टी में दफन कर दिया। उनमें से एक बादशाह औरंगजेब भी था। औरंगजेब की कब्र महाराष्ट्र की अस्मिता और जुझारू पराक्रम का स्मारक है। इस `कब्र’ को हटाओ नहीं तो हम इसे नष्ट कर देंगे, ऐसा रुख भाजपा या संघ से जुड़े कुछ उन्मादी धर्मांधों ने लिया है। उन्हें इतिहास को समझना चाहिए।
संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन अपने चरम पर था, तब की बात है। पु. म. लाड उस समय केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव थे। महाराष्ट्र के बारे में उल्टे-सीधे विचार प्रकट करने वाले राजनेताओं के कई `अंधभक्त’ उनके पास आते थे। उस समय लाड उन्हें एक निश्चित जवाब देते थे। `महाराष्ट्र के बारे में कोई भी निर्णय लेने से पहले औरंगाबाद (छत्रपती संभाजीनगर) जाकर औरंगजेब की कब्र देखकर आओ,’ वे इन लोगों से कहते थे। औरंगजेब की कब्र महाराष्ट्र के शौर्य का प्रतीक है। यह महाराष्ट्र की जिद और मुगलों की पराजय का प्रतीक है। दख्खन को जीतने के लिए औरंगजेब एक चौथाई शताब्दी तक महाराष्ट्र में रहा। बादशाही ठाठ के साथ वह अजमेर से ८ सितंबर १६८१ को निकला और १३ सितंबर १६८३ को नगर यानी आज के अहिल्यानगर में पहुंचा। ३ मार्च १७०७ को यह शहंशाह इसी अहिल्यानगर में हताश, पराजित और निराश अवस्था में मर गया। इन २४ वर्षों के दौरान मराठों की राजसत्ता को धूल चटाना और दख्खन पर कब्जा करना ही औरंगजेब ने अपने जीवन का लक्ष्य माना था। इसके लिए उसने एक विशाल सेना तैयार की थी। रियासतकार सरदेसाई ने `मुसलमानी रियासत’ में औरंगजेब बादशाह की इस विशाल सेना के ठाठ का वर्णन किया है। इस शक्ति प्रदर्शन से ही वह मराठों को डराना चाहता था। कुदाल-फावड़ा लिए हजारों लोग सबके सामने रास्ता साफ करते हुए जाते थे। उनके पीछे बादशाह का विशाल तोपखाना और घुड़सवार चलते थे। बीच में सैकड़ों ऊंट, हाथी और गाड़ियां होती थीं, जिन पर बादशाह का जवाहरात खजाना, सरकारी काम के दस्तावेज, खाने-पीने का सामान, कपड़े, पीने के लिए गंगाजल और अन्य कई प्रकार का सामान लदा होता था। उनके पीछे खुद बादशाह की सवारी हाथी पर, घोड़े पर या पालकी में आती थी।
बादशाह के पीछे घुड़सवार सैनिक चलते थे। खेतों को रौंदते हुए वह यहां दूसरी दिल्ली बसाना चाहता था और इसके लिए आठ लाख सैनिकों की सेना साथ लाया था। मावलों से लड़ने के लिए उसने विशेष रूप से मेवाड़ी, बुंदेले आदि पहाड़ी लोगों को अपने साथ लाया था। तोपखाने पर यूरोपीय गोलंदाज नियुक्त किए गए थे। मराठा साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा करके इतनी भारी तैयारी के साथ औरंगजेब बादशाह दक्षिण में आया और औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर) में डेरा डालकर बैठ गया, लेकिन उसके सपने को मराठों ने धूल में मिला दिया। मराठों ने उसे २४ साल तक लड़ाई में उलझाए रखा। औरंगजेब थक गया, हताश हो गया और पराजित मन से उसने प्राण त्याग दिए। औरंगजेब महाराष्ट्र को जीत नहीं पाया। अफजल खान भी शिवराय से घात करने में सफल नहीं हो पाया। कटी हुई उंगलियां लाल महल में फेंककर शाइस्ता खान भाग गया। औरंगजेब और अफजल खान की कब्रें महाराष्ट्र में ही हैं। शौर्य के उन स्मारकों को उसी तरह से देखना चाहिए।
कुछ नव हिंदुत्ववादियों की ऐसी गर्जना है कि जिस तरह बाबरी मस्जिद गिराई गई, उसी तरह औरंगजेब की कब्र को भी ध्वस्त कर देंगे। ये लोग इतिहास और महाराष्ट्र की शौर्य परंपरा के दुश्मन हैं। वे महाराष्ट्र के वातावरण में विष पैâलाना चाहते हैं और खुद को हिंदू-तालिबानी के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। हिंदुत्व का विकृतीकरण करके ये लोग शिवराय के हिंदवी स्वराज्य का भी अपमान कर रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज किसके खिलाफ लड़े? मराठों ने २५ साल तक दुश्मनों को कैसे उलझाए रखा? महाराष्ट्र के स्वाभिमान पर चोट करने वालों की कब्रें इसी मिट्टी में कैसे बनी हैं? यह इतिहास कुछ लोग मिटाना चाहते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर चल रहे इस गंदे धंधे को मुख्यमंत्री फडणवीस को बंद करना चाहिए!

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