मुख्यपृष्ठस्तंभकिसान लड़ेगा प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव...?

किसान लड़ेगा प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव…?

योगेश कुमार सोनी
दिल्ली के जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। इस दौरान एक किसान ने मोबाइल टावर पर चढ़ने की कोशिश की। किसानों का कहना है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुर्इं तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। बीते बुधवार तमिलनाडु से आए किसानों ने अपनी मांगे मनवाने के लिए एक अलग ही तरीके का प्रयोग किया। एक प्रदर्शनकारी किसान मोबाइल टावर पर चढ़ गया। इनकी मांग फसलों के बेहतर दाम और नदी जोड़ने को लेकर थी। मौके पर पुलिस पहुंची और दिल्ली पुलिस के एक आला अधिकारी ने बताया कि तमिलनाडु के कई किसान जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए, जिनमें से कुछ ने पास के पेड़ों और एक ने मोबाइल टावर पर चढ़ने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि पुलिस ने इनमें से एक किसान को मोबाइल टावर से जमीन पर उतारने के लिए फायर ब्रिगेड की क्रेन का इस्तेमाल किया। प्रदर्शनकारी किसानों ने बताया कि तमिलनाडु से करीब सौ किसानों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया। किसानों ने बताया कि वे कृषि उपज से अपनी आय दोगुनी करने, पांच हजार रुपए पेंशन, व्यक्तिगत बीमा और भारत की सभी नदियों को आपस में जोड़ने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुर्इं तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अब मुद्दा यह है कि हर महीने देश के अलग-अलग राज्य से किसान दिल्ली आकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। क्या इस समय देश के सभी किसान मौजूदा सरकार से असंतुष्ट हैं या अन्य कोई और कारण? बहरहाल, आज देश का अन्नदाता सड़कों पर उतर रहा है तो कहीं न कहीं शंका यह होती है कि देश की संचालन प्रक्रिया में कुछ तो गड़बड़ चल रही होगी। देश में पहले भी किसान आंदोलन हुए हैं लेकिन इस बार तो लगातार प्रदर्शन ने सरकार को विचलित कर दिया। बीते कुछ वर्ष पूर्व कानून तक वापिस लेने पड़े थे लेकिन बात तब भी नहीं थम रही। इसके बावजूद भी किसी न किसी राज्य के किसानों का आंदोलन जारी है, जिससे देश में किसान के लिए एक असमानता महसूस होने लगी है। बीते कुछ समय पहले देश के दो प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई और एसोचैम ने कहा था कि यदि किसान आंदोलन फिर से एक्टिव हो गया तो आर्थिक स्थिति के समीकरण बहुत बिगड़ जाएंगे। चूंकि बीते आंदोलन से हर रोज लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। दोनों संगठनों ने सरकार व किसानों से आग्रह भी किया था कि समाधान निकालते हुए इस आंदोलन को खत्म किया जाए। यदि ऐसा नहीं होता तो इकोनॉमी को उबरने में बड़े स्तर पर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए किसी भी स्थिति में आंदोलन पहले वाला रूप ले लेता है तो देश की संचालन प्रक्रिया प्रभावित हो जाएगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

अन्य समाचार