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महारेरा के नए नियम से छोटे शहरों के बिल्डरों की बढ़ेगी परेशानी?

सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (महारेरा) ने मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र (एमएमआर) के बाहर की परियोजनाओं के लिए स्वनियामक संगठनों (एसआरओ) के गठन के लिए न्यूनतम परियोजनाओं की संख्या ५०० से घटाकर २०० कर दी है। यह कदम छोटे शहरों के बिल्डरों को राहत देने का दावा करता है, लेकिन क्या यह वास्तव में उनकी समस्याओं का समाधान करेगा या सिर्फ नई जटिलताएं पैदा करेगा?
महारेरा जहां इसे बिल्डरों के लिए सहायक कदम बता रहा है, वहीं विशेषज्ञ इसे केवल औपचारिकता मान रहे हैं। नियम बदलने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं है कि एसआरओ के जरिए बिल्डरों को वास्तविक मदद मिलेगी या नहीं। पहले से ही कई बिल्डरों ने महारेरा के जटिल नियमों और प्रक्रियाओं को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। महारेरा ने २०१९ में बिल्डरों के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी थी। इनका काम बिल्डरों को नियमों और प्रक्रियाओं में सहायता करना है, लेकिन एसआरओ के जरिए बिल्डरों को सही दिशा देने की बजाय अक्सर यह देखा गया है कि आवेदन प्रक्रिया में देरी और कागजी कार्रवाई में बढ़ोतरी हुई है। एक छोटे बिल्डर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि एसआरओ को महारेरा के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए बनाया गया था, लेकिन अक्सर हमसे बस सदस्यता शुल्क लिया जाता है और वास्तविक मदद नहीं मिलती। नए नियम से शायद एसआरओ की संख्या बढ़े, लेकिन उनकी प्रभावशीलता पर भरोसा नहीं है।
विवादास्पद फैसला
अब तक केवल ७ एसआरओ को महारेरा ने मान्यता दी है, जिनमें क्रेडआई और नारडेको जैसे बड़े संगठन शामिल हैं। अब २०० परियोजनाओं के नए मानदंड से छोटे संगठनों के लिए रास्ता खुला है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे छोटे बिल्डरों को वास्तविक राहत मिलेगीr।
छोटे शहरों की अनदेखी
एमएमआर के बाहर छोटे बिल्डरों को महारेरा की प्रक्रियाओं में पहले से ही मुश्किलें आती हैं। नए नियम से अधिक एसआरओ तो बनेंगे, लेकिन क्या यह बिल्डरों के लिए मददगार होंगे या केवल नई समस्याएं खड़ी करेंगी, यह देखने की बात है।

क्या है असली समस्या
बिल्डरों को महारेरा के तहत हर परियोजना पंजीकृत करनी होती है। लेकिन कागजी कार्रवाई, आवेदन में त्रुटियां और आवश्यक जानकारी के अभाव में अक्सर आवेदन खारिज हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में एसआरओ की भूमिका केवल बिचौलिए की तरह नजर आती है।

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