मुख्यपृष्ठस्तंभबदलेगी रेलवे स्टेशनों की तस्वीर?

बदलेगी रेलवे स्टेशनों की तस्वीर?

बीते कई वर्षों से रेलवे हादसों से अब तक कई लाखों लोगों ने अपनी जान गवा दी। हमारा दुर्भाग्य यह रहा कि हम रेलवे को लेकर समय के साथ अपडेट व अपग्रेट नहीं हुए। कुंभ के दौरान भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हादसा हुआ जिसमें कई श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। ऐसी घटनाएं भविष्य में न हो इसलिए बीते गुरुवार रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक में रेलवे स्टेशनों पर भीड़ नियंत्रण के बारे में मंथन किया गया और कई बड़े व ऐतिहासिक निर्णय लिए गए। देश के 60 प्रमुख स्टेशनों के सभी अनधिकृत प्रवेश प्वाइंट को सील कर दिया जाएगा। इसके साथ ही प्लेटफार्मों पर सिर्फ कन्फर्म टिकट वाले यात्रियों को ही जाने की अनुमति मिलेगी।

पायलट प्रोजेक्ट के तहत नई दिल्ली, आनंद विहार, वाराणसी, अयोध्या, सूरत व पटना स्टेशनों पर यह व्यवस्था तत्काल प्रभाव से शुरू की जा रही है। टिकटों की बिक्री ट्रेनों की क्षमता के अनुसार की जाएगी। स्टेशनों पर रेलवे स्टाफ के लिए ड्रेस कोड भी लागू किया गया है। रेलवे द्वारा यह बदलाव महाकुंभ के दौरान दिल्ली स्टेशन पर मची भगदड़ से सबक लेते हुए किया जा रहा है जिससे कि त्योहारों के दौरान यात्रियों को कोई दिक्कत न हो। महाकुंभ के दौरान 60 स्टेशनों के बाहर प्रतीक्षालय बनाए गए थे जिससे सूरत, पटना और नई दिल्ली में भीड़ को नियंत्रित करने में मदद मिली थी। यात्रियों को तभी प्लेटफार्म पर जाने की अनुमति दी जाने लगी जब ट्रेन पहुंच जाती थी। लगभग मेट्रो रेल जैसी स्थिति बन जाएगी। अब इसे स्थायी किए जाने से प्लेटफार्म पर अचानक आने वाली भीड़ को प्रतीक्षालय में रोका जा सकेगा। इसके अलावा बिना टिकट या प्रतीक्षा सूची वाले यात्रियों को वेटिंग एरिया में ही रोक दिया जाएगा। स्टेशनों पर एक प्लेटफार्म से दूसरे पर जाने के लिए चौड़े फुट-ओवर ब्रिज का भी निर्माण होगा। इसकी लंबाई 12 मीटर और चौड़ाई छह मीटर होगी। मानक ब्रिज के दो नए डिजाइन तैयार किए गए हैं। सभी स्टेशनों और आसपास के क्षेत्रों में निगरानी के लिए बड़ी संख्या में कैमरे लगाए जाएंगे। बड़े स्टेशनों पर वार रूम बनाने की भी तैयारी है। भीड़ की स्थिति में वार रूम में काम किया जा सकेगा। आधुनिक डिजाइन वाले डिजिटल संचार उपकरण जैसे वाकी-टाकी आदि लगाए जाएंगे। रेल मंत्रालय ने स्टेशनों पर काम करने वाले रेलवे स्टाफ एवं सेवा कर्मियों के लिए ड्रेस कोड भी तय कर दिया है। उन्हें नए डिजाइन का परिचय पत्र एवं यूनिफार्म दिया जाएगा, ताकि प्लेटफार्म पर सिर्फ अधिकृत व्यक्तियों का ही प्रवेश हो सके। आपात स्थिति में यूनिफार्म के जरिये रेलवे स्टाफ को पहचान सकने में सुविधा होगी। स्टेशनों पर व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को स्टेशन निदेशक बनाया जाएगा, जिसे सभी अन्य विभागों के प्रमुख रिपोर्ट करेंगे। निदेशक को वित्तीय अधिकार भी दिया जाएगा, ताकि व्यवस्था में सुधार के लिए तत्काल निर्णय लिया जा सके। निदेशक के पास स्टेशन की क्षमता एवं उपलब्ध ट्रेनों के अनुसार टिकट बिक्री को भी नियंत्रित करने का अधिकार होगा। क्षमता से ज्यादा टिकट की बिक्री नहीं होगी। इसके अलावा शासन को यह भी ध्यान रखना होगा कि बढ़ती जनसंख्या के आधार रेलवे स्टेशनों की बढ़ोतरी करनी होगी। मौजूदा समय में भारत में 9000 रेलवे स्टेशन है।

भारतीय रेलवे को देश की लाइफ लाइन कहा जाता है क्योंकि यहां करीब 2 करोड़ 40 लाख लोग रोजाना ट्रेन से सफर करते हैं। यह संख्या ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के बराबर है। इस आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि हमारे देश में एक दिन में जितने यात्री रेल का सफर तय करते हैं उससे यह तो तय हो जाता है कि केवल रेलवे व्यवस्था को संभालना ही एक देश की जनसंख्या के बराबर है। क्षमता से अधिक लोगों का सफर करना उनकी ही जान का दुश्मन बन जाता है लेकिन यहां यात्रियों को भी समझना होगी कि बिना वेटिंग के सफर करने से बचें चूंकि ऐसा न करने से उनका सफर कठिन तो होता ही है साथ में जान का रिस्क भी बना रहता है। आंकड़े बताते हैं कि 1960 से लेकर 2024 तक लगभग 39000 रेल हादसे हुए हैं। यानी हर वर्ष औसतन 600 से ज्यादा दुर्घटनाएं होती है। रेलवे की ईयर बुक के अनुसार सबसे ज्यादा हादसे डिरेलमेंट यानी ट्रेन के पटरी से उतर जाने के कारण होते हैं। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2022 के बीच 449 ट्रेन हादसे हुए थे जिनमें से 322 की वजह डिरेलमेंट थी। डिरेलमेंट का अर्थ होता है पटरी से उतरना या अवपथन। ट्रेन, ट्राम वगैरह के पटरी से उतर जाने को डिरेलमेंट कहते हैं। यह समस्या कई कारणों से आती है। बहरहाल,विकसित देश की मुख्य धरोहरों में से एक होती ट्रेन जिसको लेकर कई देश बहुत हाईटैक हो चुके हैं लेकिन अब हम यदि इस ओर ईमानदारी से कदम बढ़ा लेते हैं तो यह देश की आवाम के लिए बेहतर हो चूंकि तकनीकी के अभाव में बेमौत लोगों का मारा जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व निराशाजनक लगता है। ट्रेन का सफर आम से लेकर खास व्यक्ति कर रहा है। ट्रेन का सफर सबसे सुरक्षित माना जाता है लेकिन बीते कुछ हादसों की वजह से इस सफर में चुनौतियां बढ़ती जा रही है। बहरहाल, सरकार के इस कदम से कितना फायदा होगा देखना यह होगा। बजट की बात करें तो इस बार सुरक्षा कवच को लेकर एक लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे। रेलों के टकराव से होने वाली दुर्घटनाओं न हो इसके लिए बहुत काम होने की बात भी कही है। बजट इतना बडा है कि यहां तकनीकीकरण को बहुत बढ़ावा दिया जा सकता है। इसमें ट्रैकमैन, असिस्टेंट पॉइंट्समैन, गनमैन, केबिनमैन, हेल्पर, प्यून व ही-मैन को अधिक सुरक्षा प्रदान की जाए, जिसके अंतर्गत उनको हर गतिविधी का अलर्ट मिलता रहे। दरअसल, इस बार तकनीकी प्रारूप बढ़ाने पर ज्यादा काम होगा, चूंकि जब किसी की किसी खामी का तकनीकी के अभाव में मृत्यु होती है तो हमें बेहद दुख होता है, लेकिन इस बार इसके लिए इतना बड़ा बजट है कि इस क्षेत्र में बहुत काम होगा, जिसकी शुरुआत हो चुकी है। देश के प्रमुख रेलवे रूट पर कचव का अपग्रेड वर्जन 4.O लगाने का काम तेजी से किया जाएग। कवच के नए वर्जन को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन में अप्रूवल दे दिया है। भारतीय रेलवे के सबसे व्यस्त रूटों में से दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-कोलकाता शामिल हैं। इन दोनों रूटों को कवच से लैस किया जा रहा है। साथ ही मुंबई-चेन्नई व चेन्नई-कोलकाता रूट पर भी कवच लगाया जाएगा। इस तरह कुल मिलाकर करीब नौ हजार किमी लंबे ट्रैक को कचव से लैस करने की तैयारी है। लेकिन इसमें सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

योगेश कुमार सोनी
वरिष्ठ पत्रकार

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