सामना संवाददाता / मुंबई
ऐसी कई सीटें हैं, जिन पर बीजेपी ने २ हजार से भी कम अंतर या दबाव से जीत हासिल की है। पूरे भारत में बीजेपी ने ऐसी कम से कम ५० सीटें जीती हैं। महाराष्ट्र में बीड व मुंबई के लोगों ने प्रशासनिक तंत्र पर दबाव को बड़े करीब से अनुभव किया है। बीड में उम्मीदवार बजरंग बप्पा सोनावणे द्वारा चुनाव अधिकारियों को आत्मदाह की धमकी देने के बाद प्रशासन थोड़ा हरकत में आया, अन्यथा उनकी हार की घोषणा करना ही बचा था। उधर, मुंबई में भी इसी तरह से रवींद्र वायकर को विजेता घोषित किया गया है, जो पहले हार चुके थे। बाद में दबाव तंत्र का उपयोग कर उन्हें जिताया गया।
इसके लिए चुनाव आयोग की गलतियां जिम्मेदार हैं। चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप लगे हैं। सातारा में तो जानबूझकर चुनाव आयोग ने चुनाव चिह्न को लेकर भ्रम पैदा किया। महाविकास आघाड़ी के प्रत्याशी को हराया है, ऐसा साफ प्रतीत होता है। निर्दलीय व्यक्ति का नाम नहीं, पता नहीं और लाखों में वोट बटोर गया, जिसके चलते मविआ के प्रत्याशी शशिकांत शिंदे को हार का सामना करना पड़ा। अब यह मामला न्यायालय में जाएगा, लेकिन इसमें बहुत समय बर्बाद होता है और निर्वाचित होने वाले वास्तविक उम्मीदवार को काफी वेदना झेलनी पड़ती है।
आरोप है कि महाराष्ट्र में सातारा में शशिकांत शिंदे की हार के लिए ‘तुतारी’ सिंबल का खेल जिम्मेदार है। दो चिह्न ‘तुतारी वादक’ और सिर्फ ‘तुतारी’ ने बहुत भ्रम पैदा किया। सातारा से उम्मीदवार हार गया, जबकि दिंडोरी के उम्मीदवार सुरक्षित बच गए।