उमेश गुप्ता / वाराणसी
शारदीय नवरात्र के बाद देवी दुर्गा की प्रतिमाओं को विसर्जन के पूर्व बंगीय मान्यताओं के अनुरूप सिंदूर से पूजा किया गया। ऐसे में बंगीय समाज की महिलाएं सिंदूर खेला की परंपरा और मान्यता का निर्वहन करने के लिए सुबह ही दुर्गा पंडालों में पहुंच गईं। हाथों में सिंदूर की थाल सजाकर बंगीय परंपराओं के क्रम में महिलाओं ने सबसे पहले देवी दुर्गा के माथे पर सिंदूर अर्पित करने के बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाकर अखंड सुहाग की कामना की गई। सुहागिनों ने एक दूसरे को सिंदूर लगाने के बाद मां दुर्गा से अखंड साैभाग्य और सुहाग रक्षा की कामना की।
मां दुर्गा को विदाई के पूर्व अश्रुपूरित नयनों से एकटक निहार कर आशीष मांगा और अगले बरस जल्दी आने की कामना भी बंगीय समाज की महिलाओं ने की। खुशियों से सराबोर होकर मां के पंडाल में नाच-गाने की परंपरा निभाई और प्रसाद का भोग लगा और बांट कर आपस में खुशियां साझा की। सिंदूर लगाने के बाद मां के चरणों की धूलि लेकर उनको विदाई दी गई। पंडालों में इसके बाद एक-एक कर देवी दुर्गा की मूर्तियां विसर्जन के लिए उठना शुरू हो गई। इसके साथ नम आखों से बंगीय समाज की महिलाओं ने मां दुर्गा को विदाई देकर अगले बरस जल्दी आने की कामना की। बंगाली टोला सहित तमाम बंगीय मोहल्लों और पंडालों में इसी के साथ वर्ष भर का यह अनोखा त्योहार समाप्त हो गया। इस दौरान सिंदूर खेला की रस्म पूरा करने के बाद महिलाओं ने घरों का रुख किया और स्नान के बाद भोजन व प्रसाद ग्रहण किया।