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विश्व रेडियो दिवस : श्रोता कितने भी मॉडर्न हो जाएं…‘रेडियो’ से अभिरुचि नहीं होगी कम!

डॉ. रमेश ठाकुर

रेडियो के नाम मुकर्रर है कल का दिन। सालाना 13 फरवरी को न सिर्फ भारत में, बल्कि समूचे संसार में ‘अंतर्राष्ट्रीय रेडियो दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यूनेस्को में 3 नवंबर, 2011 को आयोजित हुई 36वीं आमसभा में इस दिन को मान्यता प्रदान की गई। मार्डन समय में टीवी-डिजिटल के दौर में भी रेडियो ने अपनी जगह बनाई हुई है। मौजूदा पीढ़ी बेशक थोड़ी-बहुत अंजान हो, लेकिन संसार रेडियो को सुनकर ही बड़ा हुआ है। इसलिए उसकी अहमियत को जानता है। पिछले वर्ष-2024 की थीम ‘सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी’ थी, जिसका उद्देश्य रेडियो के उल्लेखनीय अतीत, प्रासंगिकता वर्तमान और गतिशील भविष्य पर व्यापक प्रकाश डालना था। वहीं इस वर्ष 2025 की थी है, ‘रेडियो के अद्वितीय मूल्य की ओर ध्यान आकर्षित करना’।
इस दिवस पर मुहर तभी लगी थी, जब स्पेन रेडियो अकादमी’ ने 13 फरवरी को ‘विश्व रेडियो दिवस’ मनाने का प्रस्ताव सबसे पहले रखा था। इसके पीछे उनकी सोच थी कि रेडियो दिवस जैसे खास दिन के जरिए रेडियो के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई जाती रहेगी। हालांकि, विभिन्न तरह की सूचना और मनोरंजन की असंख्य विधाएं कितनी ही क्यों न उपलब्ध हो जाएं, रेडियो की प्रासंगिकता कभी कम नहीं होगी। 13 फरवरी वह तारीख थी, जब 1946 में अमेरिका में पहली बार रेडियो ट्रांसमिशन से संदेश भेजा गया था और संयुक्त राष्ट्र ने रेडियो की शुरुआत करी। विश्व के ऐसे कई छोटे मुल्क हैं, जो अब भी काफी पिछड़े हुए हैं, वो सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिहाज से आधुनिक युग में भी रेडियो पर ही निर्भर हैं। 2012 में पहले विश्व रेडियो दिवस के सम्मान में, लाइफलाइन एनर्जी, फ्रंटलाइन एसएमएस, एसओएएस रेडियो और एम्पावर हाउस ने लंदन में एक बड़ा सेमिनार भी आयोजित किया गया था।
भारत में आजादी के दशकों तक संचार का प्रमुख जरिया रेडियो रहा। टीवी-सिनेमा का विस्तार 80-90 के दशक बाद आरंभ हुआ। उससे पहले तक जनमानस के मनोरंजन और सूचनाओं का साधन रेडियो था। गाना सुनना, समाचार सुनना, स्वर चित्रहार, अच्छी-बुरी सभी सूचनाएं रेडियो से ही मिलती थीं। लाइव मैच की कमेंट्री हो, या सरकारी कामकाज, खेतीबाड़ी, रोजगार आदि की जानकारी का भी एक मात्र साधन रेडियो ही था। देश ने बदलाव की अंगड़ाई जब से लेनी शुरू की, तो बहुत कुछ पीछे छूट गया। पहली दस्तक टीवी के जरिए ‘ब्लैक एंड बाईट’ के रूप में हुई। कलर टीवी का आगाज कुछ वर्षों बाद हुआ। बावजूद इसके लोगों की अभिरुचि रेडियो से कभी कम नहीं हुई।
हां, इतना जरूर हुआ ‘आल इंडिया रेडियो’ ने निजी टीवी की चकाचौंध में कई प्रादेशिक स्तर के कार्यक्रमों और रेडियो स्टेशनों को समेट जरूर दिया। वो ऐसा वक्त था, जब दर्शक तेजी से टीवी की ओर दौड़ रहे थे, लेकिन एक वर्ग तब भी ऐसा था, जिसका मन रेडियो से नहीं डगमगाया? उन्होंने सदैव रेडियो को ही प्राथमिकता दी, उनके लिए रेडियो ना सिर्फ संगीत का रंगमंच रहा, बल्कि, मन का संचार, आत्मा का संगीत और भावनाओं की अभिव्यक्ति जैसा था। वक्त चाहे कितना ही क्यों न बदले, लेकिन रेडियो का वजूद हमेशा जिंदा रहेगा। रेडियो को सुनने वालों की अभी भी कोई कमी नहीं? नित नए निजी रेडियो एफएम खुल रहे है और बंद होते हैं। नए-पुराने जमाने के गाने लोग आज भी मोबाइल के जरिए एफफम पर सुनते हैं। वो जानते हैं कि जो मजा रेडियो में है, वह चलचित्र में नहीं?
केंद्र सरकार रेडियो के प्रचार, प्रसार-प्रसारण पर अब ज्यादा ध्यान दे रही है। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अपना पसंदीदा प्रोग्राम ’मन की बात’ रेडियो पर करते हैं। रेडियो दिवस के मनाने की पीछे भी एक लंबी कहानी है। असल मायनों में हिंदुस्थान को ही रेडियो का जनक माना जाता है। इसके पीछे एक लॉजिक है। एक जमाने में अफगानिस्तान, नेपाल और एशिया के मुल्कों के शासक-राजा सिर्फ भारतीय रेडियो को ही सुना करते थे, क्योंकि वो भारतीय एनाउंसरों की प्रस्तुतियों के दीवाने होते थे। कह सहते हैं कि हमसे ही प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने देशों में रेडियो का प्रसार करवाया। रेडियो की सबसे प्रसिद और खनकती सुरीली आवाज अमीन साहनी की होती थी, जिसे श्रोता कभी नहीं भूल पाएंगे, उनका पिछले वर्ष ही देहांत हुआ। वह रेडियो के सबसे बड़े प्रेमी कहे जाते थे।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा रेडियो के जरिए की थी। मॉर्डन जमाना भी रेडियो के महत्व और जरूरत से वाकिफ है। गत कुछ वर्षों से विश्व के देश रेडियो की ओर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं, तभी 2023 में विश्व रेडियो दिवस का विषय ‘रेडियो और शांति’ रखा गया। जिसका उद्देश्य शांति को बढ़ावा देना और संघर्ष को रोकने के लिए स्वतंत्र रेडियो के महत्व पर ध्यान केंद्रित करना था। वहीं कोरोना काल में वर्ष-2021 में, ‘नई दुनिया, नया रेडियो“ थीम निर्धारित की गया, जिसका मकसद था कोविड-19 महामारी द्वारा लाए गए परिवर्तनों को अपनाने और आकार देने में रेडियो की भूमिका पर केंद्रित थी। रेडियो को तवज्जो देने का ये सिलसिला यूं ही जारी रखने की दरकार भी है। रेडियो की महत्ता कभी कम नहीं होनी चाहिए।

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