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कश्मीर में लोकसभा चुनावों में यक्ष प्रश्न: गुलाम नबी आजाद ने हार के डर से मैदान छोड़ा है तो भाजपा ने किस लिए

–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। धारा 370 को हटा कर कश्मीर के विकास का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी कश्मीर के विकास का श्रेय कश्मीर में ही लेने को तैयार नहीं है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार, दरअसल उसे हकीकत का सामना होने का डर है। इसलिए वह कश्मीर के तीन संसदीय क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार न उतार कर उस सच्चाई का सामना नहीं करना चाहती जिसमें कहा जा रहा है कि भाजपा फिलहाल कश्मीर में पैठ नहीं बना पाई है। कश्मीर के तीन संसदीय क्षेत्रों – अनंतनाग, श्रीनगर और बारामुल्ला से अपने उम्मीदवार न उतारने का संकेत इसी हफ्ते गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू में एक जनसभा को संबोधित करते हुए दिया था।

उनके इस संकेत से उनके कश्मीर के काडर में सच में कोई निराशा नहीं हुई बल्कि पार्टी सूत्रों के बकौल ‘इज्जत बची सो लाखों पाए’ की भावना से वे फूले नहीं समाए थे। इतना जरूर था कि प्रदेश पार्टी अध्यक्ष रविन्द्र रैना जरूर निराश हुए हैं, जिन्हें यह उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें उनके गृह जिले राजौरी-अनंतनाग में सपनों की फसल काटने का मौका प्रदान करेगी और उन्हें राजौरी-अनंतनाग सीट से मैदान में उतारा जाएगा।

अनंतनाग-राजौरी सीट पर 25 उम्मीदवार मैदान में हैं। सीधा मुकाबला पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के गुज्जर नेता मियां अल्ताफ के बीच माना जा रहा है। हालांकि इस संसदीय क्षेत्र में मुकाबला होना तो त्रिकोणीय था पर अंतिम समय में डीपीएपी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद मैदान ‘छोड़’ गए। इससे पहले वे उधपमुर-डोडा सीट से भी किस्मत आजमाने की सोच रहे थे क्योंकि डोडा उनका गृह जिला है।

चर्चा यह नहीं है कि कौन कहां से लड़ रहा है या लड़ेगा, बल्कि इसकी है कि आखिर भाजपा कश्मीर से मैदान में क्यों नहीं उतरी। अगर नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला की मानें तो भाजपा अपनी पार्टी तथा पीपुल्स कांफ्रेंस के पीछे खड़े होकर प्राक्सी चुनाव लड़ना चाहती है। यह बात अलग है कि उमर अब्दुल्ला के इस बयान के बाद अपनी पार्टी तथा सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस के बीच बयानों के तीर एक दूसरे को छलनी करने लगे हैं।

पर इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीर के जिन तीन संसदीय क्षेत्रों मे भाजपा धारा 370 हटाने की श्रेय की फसल को नहीं काटना चाहती है वहां भाजपा की पैठ नहीं है। क्योंकि नेकां और पीडीपी पुराने और मंजे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। राजनीतिक पंडितों के अनुसार कश्मीर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली में एकत्र हुई भीड़ को भाजपा के समर्थन में उमड़ा हुआ सैलाब नहीं माना जा सकता क्योंकि कश्मीरियों ने हमेशा ही खाने व दिखाने के दांत अलग-अलग वाली कहावत को चरितार्थ किया है।

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