यामा

सलोनी, सांवली, सुंदरी यामा
ओढ़ चुनरी तारों वाली
कोमल पांवों में पहन
पायल जगमग जुगनू वाली।
चंद्रिका बनी पथ प्रदर्शक
विपिन महके मंद समीर
अभिसारिका सी चंचल यामा
इत-उत झांके हो अधीर।
नहीं दिख रहे प्रियतम चंद्र
अब तक छुपे पर्वत की ओट।
चिहुंक रहे पखेरू नीड़ में
अपने कोमल पंख समेट।
बगिया हो गई सुशोभित
भांति-भांति के पुष्पों से।
बेला, चमेली, जुही कुमोदनी
रात की रानी ,हार सिंगार खिले।
बढ़ा रहे धड़कन मामा की
अब और होता इंतजार नहीं।
रूपा सा चमक गया विपिन
नहा चांदनी की प्रथम किरण में
अभीभूत हो झूम उठी यामा
निकले चंद्र प्रीतम जब अपने पुर से।
-बेला विरदी।

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