आप और मैं!

दर्द सबके सीने में है
कोई किसकी सुने किसको सुनाए,
कहानी आरंभ कहां से करूं
अंत कहां जा कर करूं
इसी पशोपेश में कुछ कहा न जाए।
कदम आपने आगे न बढ़ाए
एक कदम हम भी न चल पाए।
रास्ते तय हों तो कैसे,
लहरें टकराना न छोड़े
किनारा अपने को न जोड़े
सैलाब अब रुके तो कैसे।
अफसाना आपने सुनाया
एक अफसाना मैंने सुनाया
दोनों ने एक दूसरे का नहीं सुना
अपना-अपना ही सुनाया।
मरहम लगाना सभी जानते हैं
पहल कौन करे यही
तय नहीं कर पाते।
नश्तर अपना बन कर चुभाए हैं
हाल पूछे तो कैसे।
आंखों को पढ़ने से पहले
दिल की चाहत लफ्जों में कह दें
अधूरी हसरतें न आपकी रहें
न ही मेरी रहें।
चार दिनों की जिंदगी
खुशगवारी में मै जिऊं
और आप भी जिएं।
-बेला विरदी

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